Tuesday, February 28, 2017

अमन के पक्षधर हैं जो

गाँधी शांति के पक्षधर थे
एक उग्र राष्ट्रवादी ने उनकी हत्या कर दी
क्या हुआ था महान मार्टिन लूथर किंग के साथ
याद कीजिये जरा 
4 अप्रैल 1968 को
जब वे अपने होटल के कमरे की बालकनी में खड़े थे ?
उनको भी मार दी गयी थी गोली
आज़ादी के पक्ष जिनका कोई योगदान नहीं
वे केवल हत्या करना जानते हैं
गुरमेहर भी युद्ध के पक्ष में नहीं है
उसने अमन की वकालत की है
उसे भी डरा रहे हैं
आज के नव राष्ट्रवादी !
अमन के पक्षधर डरते नहीं
युद्ध मानवता के पक्ष में नहीं
विनाश का पर्याय है
हर युद्ध
आखिरकार दो महायुद्धों के बाद भी
तमाम शक्तियों को
शांति वार्ता के लिए आना पड़ा था
एक टेबल पर |
किन्तु,
वो याद किसे है ?
युद्धोन्माद अँधा बना देता है
अक्ल से |

Monday, February 27, 2017

बदनामी से डर किसे है

कर्ज़ कुछ बाकी हैं
अभी ज़िंदगी के
वर्ना
अब तक
रुख़सत ले चुकी होती ज़िंदगी
बदनामी से डर किसे है
इश्क़ से खौफ़ लगता है
दुश्मन से नही
अब दोस्त से डर लगता है |

Saturday, February 25, 2017

इस अनजान दुनिया में

अभी -अभी लौटा हूँ
ऑफिस से
रास्ते में ऑटो वाले भैया ने
खैनी बना कर दिया
उन्हें लगा 
मैं भी बिहारी हूँ
वे मोतिहारी के थे |
कितना अच्छा लगता है
जब कोई अनजान
पहली बारी में आपको
अपना समझने लगे
उन्होंने मुझे
मेरी भाषा से पहचाना
मतलब उन्हें बिलकुल पता न चला
कि मैं ,
बिहारी नहीं
बंगाली हूँ |
ऐसे में आप ही बताइए
मैं कैसे कहता उनसे कि
मैं, बिहारी नहीं
बंगाली हूँ
हिंदी में लिखता हूँ !
मेरी भाषा ने
मुझे एक अनजान से दोस्ती करवाई
भाषा उधार की नहीं होती
भाषा,
केवल भाषा होती है
एक पहचान की
जिससे हम खोज लेते हैं
इस अनजान दुनिया में
किसी बिछड़े हुए
अपने को |

तुम्हारा कवि

1.
कब तक लगाते रहोगे
अपनी तस्वीर दीवार पर ?
कभी आईना से भी
कुछ पूछ लेते 
तो अच्छा होता
-तुम्हारा कवि

2.
तुम्हारे संघर्ष की कहानी में
छिपी हुई है
मेरी नई कविता
करीब आओ तो
पढ़ सकता हूँ उसे 
मैं तुम्हारी आखों में।

Thursday, February 23, 2017

घटनाएं निंदनीय नहीं होती

घटनाएं
निंदनीय नहीं होती
न ही दुखद होती हैं
क्योंकि निंदा या अफ़सोस से
घटनाएं बदल नहीं जाती
घटनाएं घटने के लिए होती हैं
पर घटती नहीं
बढ़ती जाती है
समय और विकास के साथ
जो कुछ होता है
घटनाओं में लिप्त
मनुष्य का होता है
करने वाला भी
और भोगने वाला भी वही
हाँ,कुछ घटनायें
भयानक होती है
आज की तरह |

Wednesday, February 22, 2017

मेरा होकर बहुत तनहा रह गया है

दिन भर की तमाम
अराजक घटनाओं को झेल कर
खुद को भरोसा देता था
कमरे पर लौट कर
तुमसे लिपट कर रो सकता हूँ मैं 
तुमने मुझसे विदा मांग ली
और मैं अनाथ हो गया उस दिन
अक्सर अब
कमरे में लौट कर
देखता हूँ बुद्ध की उस तस्वीर को
जिसे तुम्हारी पसंद से
हम साथ खरीद लाये थे
अपने 10 / 12 के कमरे की
खाली दीवार के लिए
बुद्ध की वो तस्वीर
आज भी टंगी हुई है 
मेरे कमरे की दीवार पर
बस अब यह कमरा
हमारा से
मेरा होकर
बहुत तनहा रह गया है

दिन भर जूझता है
अपने अकेलेपन से
मेरी तरह
तुम बताओ
खुश तो हो न
अपने भरे -पूरे घर में
इनदिनों
मुझसे आज़ादी के बाद ?
इस कमरे में
उन 30 दिनों की
यादों के सिवा
कुछ भी नहीं बचा है
मेरे पास |
#तुम्हारा कवि सीरिज से

Monday, February 20, 2017

उसे पहचानों

वो कौन है
जो हमारी इज़ाजत के बिना
हमारे हक़ में
फैसला लेने का दावा करता है?

वो कौन है
जिसका हाथ रंगा हुआ है
इंसानी खून से
और हमारी रक्षा की बात करता है ?

हम क्यों हैं ख़ामोश
अपने ही लोगों की चीखें सुन कर
वो कौन है
उसे पहचानों
जो दोषी है
हमारी तकलीफ़ों के लिए 

Sunday, February 19, 2017

अब जुदा होके

1.
प्रेम में रहते हुए
कभी लिख नहीं पाया
प्रेम कविता
अब जुदा होके
रोना चाहता हूँ 
और निकल आती है
कविताएँ
अब अक्सर
उभर आती है बनारस की गंगा
मेरी आँखों में
जिसे मैंने देखा था शांत बहते हुए
तुम्हारी आँखों में
तुमसे लिपट कर रोना चाहता हूँ
और तुम .....
उफ्फ ....

2.

तुमने मुझे भूला दिया
यह पता है मुझे
मैं तुम्हें
याद नहीं करता
तुम्हें भूला नहीं हूँ 
भूलूँगा नहीं
आखिरी साँस के बाद भी
कवि हूँ तुम्हारा
तुमसे प्यार किया
मैंने !
-तुम्हारा कवि सीरिज से

Tuesday, February 14, 2017

ईनाम के बाद बिछड़ जाते हैं लोग

अंग्रेजी कैलेंडर में दर्ज़
'प्रेम दिवस'
भी आज निकल ही गया
जैसे निकल जाता है रोज के दिन
पर कुछ दिन सच में खास होते हैं
या बना दिए जाते हैं
मुझे बहुत ख़ुशी होती है
जब दुनिया में प्रेम की बातें होती हैं
वर्ना रोज -रोज नफ़रत और जंग की बातों ने
जीवन को नरक जैसा बना दिया है
वैसे मैंने न तो स्वर्ग देखा है
न ही नरक
जो कुछ देखा इस धरा पर देखा है
धरती खुबसूरत है
पर प्यार करने वालों ने इसे और भी खुबसूरत बना दिया है
मैंने आज
नहीं लिखी कोई प्रेम कविता
पढ़ता रहा
सोचता रहा
तुम्हारा चेहरा
अलबम को आज निकालकर तस्वीरें पलटता रहा
थियेटर में अंतिम फिल्म
हमने साथ देखी थी
जंगल बुक का
वो शेर खान
मर चुका था उस फिल्म में
उसे मोगली ने मारा था
मानवीय दिमाग के इस्तेमाल से
तुमने कहा था
फिल्म तो बहाना था
बस कुछ पल
हमें साथ रहने का
वो बहाना था
रिक्शे पर लौटते हुए
भरी सड़क पर
मेरे गालों पर तुम्हारा चुम्बन
इस जनम का ईनाम है मेरा
पता नहीं था कि
ईनाम के बाद बिछड़ जाते हैं लोग
Image result for couple on cycle rickshaw sketch

Saturday, February 11, 2017

बहुत खारा है शहर का पानी

शहर खुबसूरत है
और बदसूरत है शहर का स्वभाव
यहाँ कम्पूटर ही नहीं
आदमी भी 'हैक' हो जाता है
सब लोग नहीं 
पर अधिकतर
शकुनी मामा भी पानी -पानी हो जाते
जो अब की आते आधुनिक इन्द्रप्रस्थ में
चेहरे पर मुस्कान लिए
फ़रेब वाले सब बना लेते उन्हें दोस्त
और बता देते
षडयंत्र कैसे किए जाते हैं
ये आधुनिक शहर
बदल देते हैं दोस्ती की नियत
राजधानी है तो
राजनीति भी होगी
सच बोलने पर मिलती है धमकी
उठाएंगे सवाल चरित्र पर
सबूत बनाएं जाएंगे
जीत के लिए
ईमानदारी किस जन्तु का नाम है ?
पीड़ा में भी हंसने की कला शहर के बाजारों में मिल जाएगी
आप देहाती हैं
यही गुनाह है
ऐसा नहीं कि पूरा गाँव बहुत ईमानदार होता है
पर शहर जितना शातिर भी नहीं होता
शहर मतलब व्यापार केंद्र
ये शहर आपको
भीड़ में तन्हा कर देता है
कल ही पिंटू लौट गया अपने गाँव
उसने कहा बहुत खारा है
शहर का पानी !

Friday, February 10, 2017

मेरी कविता में तुम

उन तमाम पन्नों पर
 लिखे हुए हजारों शब्दों में
मेरी एक भी कविता शामिल नहीं है
क्योंकि उनमें कहीं
मैंने,
तुम्हारा नाम नहीं लिखा है
भूल गया था लिखना
तुम्हारे स्पर्श के अहसास को
दर्ज नहीं कर पाया
तुम्हारे साथ के सुखद पलों को
उन शब्दों में कहीं
इसलिए,
मत खोजना कोई कविता तुम
उन शब्दों के ढेर में
जब मेरी कविता बनेगी तो
उसमें तुम्हारी मौजूदगी का
अहसास होगा तुम्हें |
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*तुम्हारा कवि सीरिज से 

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...