Tuesday, May 30, 2017

मैं बेवफ़ा हूँ और तुम मासूम

पता नहीं क्यों
तुम्हारे तय रास्तों पर
मंजिल तक पहुँच न सका
मेरा प्रेम !
अब मैं
बेवफ़ा हूँ
और तुम मासूम |

रेत नहीं बहते पानी हैं

हो सकता है 
अब हम आपकी 
आँख की 
किरकिरी बन गये हैं 
जबकि हम रेत नहीं 
बहते पानी हैं !

किसान बोलता नहीं शोषण की कहानी

किसान बोलता नहीं
शोषण की कहानी
कर लेता है ख़ुदकुशी
आदिवासी बोलते हैं 
लड़ते हैं अपनी जमीन -जंगल के लिए
पुलिस मार देती है गोली
छात्र उठाये आवाज़ अपने हक़ के लिए
तो,भर दिए जाते हैं जेल |
लोकतंत्र की किताब में
ये नये अध्याय हैं !
इन नये लिखे अध्यायों को बदलने के लिए
लड़ना तो होगा |

हिंसा नहीं , बल्कि प्रेम का विस्तार हो

यहाँ हर अपराध को घृणित और निंदनीय
कह कर हम सब
अपने सामाजिक कर्तव्य से छुटकारा पा लेते हैं
न तो अपराध के कारणों की तलाश करते हैं
न ही भविष्य में उसके रोकथाम पर सोचने का वक्त निकाल पाते हैं 
दरअसल हमने कभी अपने किसी भी दायित्व को ठीक से जाना -समझा नहीं
मैं यहाँ आपको नैतिकता या सामाजिक दायित्व पर
कोई ज्ञान नहीं दे रहा हूँ
क्यों कि उसके लिए जो ज्ञान और समझ चाहिए
वह मेरे पास नहीं है अभी
मैं चाहता हूँ बस थम जाए पतन इंसानी समाज का
और मनुष्य सचमुच का मनुष्य बन जाये
विकास के लिए शोषण की अनिवार्यता समाप्त हो जाये
हिंसा नहीं , बल्कि प्रेम का विस्तार हो |
पर सवाल है कि
ये सब कैसे हों
कौन करे पहल ?
इन सवालों का जवाब कहीं और से नहीं
खुद से लेना होगा सबको |

Thursday, May 18, 2017

हर बेवक्त और गैरज़रूरी मौत को देशहित में जोड़ दिया जायेगा !

मनपसंद सरकार पाने के बाद
जिस तरह चढ़ता है सेंसेक्स
ठीक उसी दर बढ़ रही हैं
हत्याएं इस मुल्क में !
यह आधुनिक विज्ञान का युग है
जब हम टीवी पर
शौच के बाद साबुन से हाथ धोना सीख रहे हैं
जब, धार्मिक उन्माद और सांप्रदायिकता
अपने शिखर पर हैं
टीवी पर शांति के उपदेश दिए जा रहे हैं !
मुल्क को बुखार है शायद
नदी में डुबकी लगाकर
सब पाप मुक्त हो रहे हैं
जब राजा ने खुद को फ़क़ीर कह दिया तो
प्रजा के लिए बचा क्या है ?
फैसले की ज़िम्मेदारी
उन्माद , बेकाबू भीड़ को सौंप दी गयी है
सत्ता का निर्देश है
सवाल न करें
अब हर बेवक्त और गैरज़रूरी मौत को
देशहित में जोड़ दिया जायेगा !

मुझे कौन बचाएगा इन अपराधों से ?

अपराधों की सूची बना ली गयी है
सवाल करना अपराध है
प्रेम उससे बड़ा अपराध
गरीबी सबसे क्रूर अपराध
हक़ मांगना तो सबसे कठोर अपराध है
आदिवासी, मुसलमान होना उससे भी गंभीर अपराध इस समय देश में
गाय के पास से गुजर जाओ तो
ध्यान रहे कि
उसकी गंध भी न भटके तुममें
ऐसा होने पर सज़ा ए मौत हो सकती है अब
चुपचाप पड़े रहो
सत्ता के निर्णय को किस्मत मान लो
इसी में जिन्दगी का सार है
और मेरा
मन है कि
सवाल पूछने
विद्रोह करने पर उतारू है
मुझे कौन बचाएगा इन अपराधों से ?

Monday, May 15, 2017

मौत से वफ़ा सीखने का वक्त है

धरती ने क्या चाहा
नहीं पता आकाश को
किसान को पता था
और किसान मर गया
एकदिन भूख से
सागर की चाहत
चाँद को पता थी
नदी का मार्ग किसे पता था !
रिश्तों की नींव हिल रही है
अविश्वास और औपचारिकता के दायरे में
यह वक्त
संदेहमुक्त होने का वक्त है
यह खुद को पहचानने का वक्त है
जिन्दगी जब भरोसा नहीं करती खुद पर
मौत से वफ़ा सीखने का वक्त है

Saturday, May 13, 2017

समेट लो कुछ रेत वक्त नापने के लिए !

लगता है कविता से दूर हो गया हूँ
जैसे तुम से बिछड़ गया हूँ
बहोत फ़िक्र थी तुम्हें , मेरी
ऐसा मुझे भी लगा था
मेरी आँखें क्यों भीग जाती हैं
 सूखे के मौसम में !
इस रहस्य का पता
केवल तुम्हारे पास है
और तुम
कोई पहाड़ नहीं
मैंने सोचा था मैदान हो
मैं नदी बन कुछ विस्तार चाहता था
अपने अस्तित्व का
पता चला हृदय से मरुस्थल हो
मर गयी नदी
समेट लो कुछ रेत
वक्त नापने के लिए !

मुझे तुमने कवि माना चुपके से !

मेरी नींद उड़ गयी !
क्यों ?
पड़ोसी मुल्क में एक धमाका हुआ
25 मरे
कश्मीर में पड़ोसी मुल्क के सैनिकों ने
गोलीबारी की
एक माँ शहीद हो गयी
एक माँ के बेटे के साथ
मुल्क के भीतर मारा गया
एक नागरिक
उसकी थाली पर
सत्ता की नज़र थी
इक इबादतगाह पर हमला किया
एक धार्मिक संगठन की सेना ने
एक प्रेमी जोड़े को
मौत की सज़ा सुना दी गयी
प्रेम के जुर्म में
किसानों के एक समूह ने
आत्महत्या कर ली
क़र्ज़ के बोझ से
मैंने प्रेम किया नि:स्वार्थ
और असफल हुआ प्रेम में
मेरी कविता शमशान
या किसी कब्रिस्तान में पढ़ी गयी
मेरी मौत के बाद
मुझे तुमने कवि माना
चुपके से!

नदी / मेरी आँखें

नदी ने राह मांगी 
मैंने अपनी आँखें बिछा दी

Tuesday, May 9, 2017

मैंने पीठ दिखाना नहीं सीखा अब तक

मेरी हत्या की सारी तैयारी हो चुकी है
हत्या के बाद
न मेरी लाश मिलेगी
न ही मेरी हड्डियाँ
मेरी हत्या की तैयारी
बोलने वाले
चील, कौओं और गीदड़ों ने की है
इस बार
वे न तो मुझे दफनायेंगे
न ही जलाएंगे मेरी लाश को
और मैं हूँ
कि उनकी इस साजिश को समझते हुए भी
निहत्था खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में
बात तुम्हारी मुक्ति तक सीमित नहीं है
मेरी लड़ाई
तुम्हारे सुखद और सुरक्षित भविष्य की भी है
और मैं जानता हूँ
कि वे कुछ नहीं बिगाड़ सकते मेरा
मेरी विजय से पहले |
बात दुश्मनों की तो समझ सकता हूँ
पर तुम कैसे शामिल हो गये उनके पक्ष में
मेरी हत्या की साजिश में ?
जबकि तुम्हें पता है
कि मेरे जाने के बाद भी यह सवाल
करता रहेगा तुम्हारा पीछा
लड़ाई में हार दुश्मनों से नहीं होती हर बार
कुछ अपने भी हरा दिया करते हैं कभी -कभी |
मैं बार-बार याद कर रहा हूँ
आज़ादी की इस संघर्ष में
साथ देने का तुम्हारे वादे को
और मैंने दिया था भरोसा
कि निराश नहीं करूँगा तुम्हें आखिरी साँस तक
फिर कैसे बदल गया ये मौसम अचानक !
कैसे हुआ यह सब
कि तुम भी खड़े हो गए मेरे विरुद्ध मेरे दोस्त ?
बहुत मासूम हो तुम साथी
कि समझ नहीं पाये उनकी चाल
चलो, तुम साथ न सही
तुम्हारे उस झूठे वादे को साथ मानकर
लडूंगा
मैंने पीठ दिखाना नहीं सीखा है अब तक |

Friday, May 5, 2017

यह वक्त बोलने का है

यह वक्त बोलने का है
चीखने और लड़ने का है
ऐसे समय में
तुम्हारी ख़ामोशी से
भयभीत हूँ मैं
तुम बोलो
या न बोलो
तुम्हारे पक्ष में
मैं आवाज़ उठाता रहूँगा
तुम्हारे हक़ के पक्ष में
पर अब तुमसे
कुछ बोलने की अपील नहीं करूँगा
तुम लेना अपना निर्णय
अपने समय से
मेरा संघर्ष जारी रहेगा
साँस के टूटने तक |

आज तुम, मुझे अपने सपने में देखना

जब तक
मैं लौटा,
गहरी नींद आ चुकी थी तुम्हें
जंगली फूल की महक से
भर गया था मेरा कमरा !
तुम्हारी नींद में
कोई ख़लल न पड़े
इसलिए
बड़ी सावधानी से प्रवेश किया
तुम्हारे स्वप्नों की दुनिया में
आज तुम,
मुझे अपने
सपने में देखना |

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...