Friday, December 29, 2017

सर्द मौसम में मीठी होती है सुबह की धूप

अँधेरे की शिकायत नहीं करूंगा
रौशनी का  एक गुच्छा तुम्हें दूंगा
तुम केवल उसे किसी मार्ग पर लगा देना
ताकि पथिक पहुँच सकें अपनी मंजिल तक
बिना गिरे
उदासी की बात नहीं करूंगा
एक मुठ्ठी मुस्कान दूंगा तुम्हें
तुम उसे बाँट देना
सहमे हुए बच्चों में
हताश होने पर
तुम्हें सुनाऊंगा क्रांति की महान कहानियाँ
अंधकार रात में
तुम्हें चाँद के किस्से सुनाऊंगा
तनहाई में तुम्हें बताऊंगा सागर की विशालता
हम पंछियों से सुनेंगे
आकाश के बारे में
मरुस्थल में जीवन के बारे में जानेंगे
धूप में रेत को चमकते हुए देखेंगे मिलकर
सर्द मौसम में मीठी होती है
सुबह की धूप
आओ मुस्कुराना सीखें

Thursday, December 28, 2017

उसने खोज ली एक बहती नदी मेरी आँखों में

मैं खोज रहा था आग
आँखों में,
उसने खोज लिया प्रेम
मेरी आँखों में
मैं तो खोज रहा था पत्थर
उसने खोज ली एक बहती नदी मेरी आँखों में
दरअसल मेरी आँखों में बहती नदी
उसकी वेदना की कहानी है
मैंने देखा झांक कर उसकी आँखों में
खुद को पा लिया |

Monday, December 25, 2017

अहसास तस्वीरों से ज्यादा ताजा है

अहसास
तस्वीरों से ज्यादा ताजा है
हमने वसंत को छुंआ था मिलकर
अब इस तरफ उदासी है
पत्थरों ने 
मना कर दिया है ओस
ओढ़ने से
पत्तियों ने अपना लिया है
पीला रंग
मेरी आखों का नमक
खो गया है
आओ कभी सामने तुम भी
हिम्मत के साथ
मुझे बेनक़ाब करो !
मैं, तुम्हारा कवि हूँ |

Saturday, December 23, 2017

अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"

ख़ुद को फ़क़ीर घोषित कर देने भर से
कोई फ़क़ीर नहीं हो जाता
जिसके स्वागत में खड़े हो जाते हैं लाखों सेवक 
मरने -मारने को बिना सोच -विचार के
वह किसी कंपनी के बाबा द्वारा घोषणा के बाद भी
ऋषि या संत नहीं होता
हाँ, अक्सर क़ातिल को ही
ईश्वर का अवतार या वरदान मान लिए जाने की
परम्परा प्राचीन है इस देश में
ईश्वर या उसका अवतार जो मौत के बदले या उसके अनुसार
तय कर देता है किसी की मौत
उसकी हत्या को पाप के किसी श्रेणी में नहीं रखा जाता कभी भी
ईश्वर अंतिम हत्या का आदेश कब देगा
किसी को नहीं पता
मतलब उसके पाप के अंत का
किसी को नहीं पता
किन्तु , हमने कहानी और कथाओं में ज़रूर सुना है कि
हर पाप का अंत निश्चित है एक दिन
हैरानी यह कि
उस एक दिन का पता
किसी को नहीं है
भक्त इसे ईश्वर की लीला या माया कहते हैं
जिसे सामान्य जन कभी समझ नहीं पाया है
धन्य है हमारा देश
जहाँ प्रदेश और जलवायु के अनुरूप ईश्वर ने
अपना रूप -रंग बदल कर पत्थरों की मूर्तियों के रूप में
खुद को स्थापित किया
कैलेंडरों में छप गये
पूजा की विधि तय की
और भव्य देवालयों का निर्माण किया भक्तों ने
धन्य हैं वे भक्त
जिन्होंने देवों की भाषा समझ लिया
आम जन को उनका अनुयायी बनाया
लाखों -करोड़ों दान
जिसका कोई हिसाब लेने वाला नहीं
कोई इनकम टैक्स नहीं
देवता किसी देश का नागरिक भी नहीं
वह मतदान नहीं करता
सरकार नहीं चुनता
सरकार उन्हें चुनती है
अपने फायदे के लिए
कोई अदालत नहीं उनके लिए जहाँ देनी पड़े उन्हें
सफाई उनके नाम पर लिए गये किसी फैसले के विरोध में
देवता को सब माफ़ है
भक्तों को भी खुली छूट है
अपनी मन -मर्जी की !
जबावदेही केवल आम जन की है |
अतुल्य भारत का"अतुल्य ईश्वर"!

Sunday, December 17, 2017

कवि भी खुद को बचाने के फ़िराक में है

यह दौर है
जब हर कोई दिखा देना चाहता है
कि वो क्या है
और इसी दिखाने की चाह में
वह सामने वाले को नीचा दिखाना चाहता है 
और उसे पता ही नहीं चलता कि
वह खुद कितना नीचे गिर चुका है
वैसे इन दिनों यदि आप किसी पार्टी के सदस्य हैं
तो, किसी नीच को 
नीच कहने से बचिएगा 
वरना आपकी सदस्यता समाप्त हो सकती है
आप गुट से बाहर किए जा सकते हैं
मतलब साफ़ है कि
अब नीच को नीच कहना उचित नहीं है
क़ातिल को क़ातिल भी न कहिये
वरना अदालत के ऊपर फ़हरा दिया जायेगा
किसी संगठन का झंडा
और आप झंडू बने देखते रह जाओगे
ऐसी बातों पर भावुक होना मूर्खता है
व्हाट्स एप्प में लगे रहिए
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
अपने -अपने ज़रूरत के अनुसार
प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक -दूजे को बेवफ़ा क़रार दिया
दुनिया को हंसी आई
पर उन्हें शर्म आई नहीं
धर्म की गर्म हवा फ़ैल चुकी है आकाश पर
नाक ढक कर भी साँस लेंगे तो
रूह जल उठेगी
बेहतर है टीवी पर बिग बॉस देखिये
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
किसान को मरना ही है
तो मरेगा ज़हर या फांसी से
मेरा कवि
ऐसी कविता लिख कर
खुद को बचाने के फ़िराक में है !

Friday, December 15, 2017

राजा की पसंद सर्वोपरि है

लाशों की मंडी पर
बैठा है लोकतंत्र
इनदिनों
पुलिस जानती है राजा की पसंद 
उसे पसंद है
नरमुंडों की घाटी
राजा की पसंद सर्वोपरि है !
यह राजाजी के शिकार खेलने का
वक्त है |

रचनाकाल :2016 

Monday, December 11, 2017

कुछ कविताएँ जो खो गई थीं



1.
किसान बोलता नहीं
शोषण की कहानी
कर लेता है ख़ुदकुशी
आदिवासी बोलते हैं
लड़ते हैं अपनी जमीन -जंगल के लिए
पुलिस मार देती है गोली
छात्र उठाये आवाज़ अपने हक़ के लिए
भर दिए जाते हैं जेल |
लोकतंत्र की किताब में
ये नये अध्याय हैं !
इन नये लिखे अध्यायों को बदलने के लिए
लड़ना तो होगा |

2.
वे चाहते थे कि
मैं भी उनकी भाषा में बोलूं
न बोल सकूं तो कम से कम उनकी भद्दी भाषा का समर्थन करूँ
हमसे हुआ नहीं ऐसा 
हम न उनकी भाषा में बोल सकें 
न ही उनका समर्थन कर सकें 
उन्हें आग लग गई 
उनके पास भी गौ रक्षकों की एक पोषित भीड़ है 
जो कभी भी 
कहीं भी किसी भी विरोधी की हत्या कर सकती है 
पीट कर न सही 
अपनी भद्दी भाषा में वे किसी की हत्या करने में सक्षम हैं 
मैंने अपना दरवाज़ा बंद कर दिया उनके लिए
उनके डर से नहीं
अपनी भाषा को बचाने के लिए
हम नहीं गा सकते जयगान
उन्होंने मुझे कुंठित कहा
गद्दार भी
जबकि हमने उनका नमक कभी नहीं खाया
सत्ता के कई रूप हैं
पहचानने का विवेक होना चाहिए।


3.
क्यों लिखूं कविता
इस बेशर्म वक्त पर
जब सब तलाश रहें हैं उम्मीद 
और उम्मीदें मजबूर हैं आत्महत्या को 
यदि आपको लगता है कि 
मैं गलत सोच रहा हूँ 
तो , बताइए कि क्यूँ बचा नहीं पाए हम अपने किसानों को मरने से 
क्यों भूख से मर गये सैकड़ों बच्चें 
लड़कियां क्यों डरी हुई हैं
चलिए आप यह बता दीजिए कि
किस पर भरोसा करें इस वक्त
जिन्हें चुनकर भेजा था हमने संसद और विधानसभा में
उनका मुखौटा उतर चुका है
ऐसे में आप मुझे बताइए कि
कविता लिख कर क्या करूँगा
कविता अब बाहर निकलना नहीं चाहती
बहुत सहमी हुई है
मेरी तरह ....

4.
तुम्हारे संघर्ष की कहानी में 
छिपी हुई है 
मेरी नई कविता 
करीब आओ तो 
पढ़ सकता हूँ उसे
मैं तुम्हारी आखों में।

5.
वो तमाम कमियाँ
बुराई और कमजोरियां
जो इन्सान में होती हैं
मुझमें भी है |
शायद
इसलिए
तुमसे करता हूँ
प्रेम !

6.

नि:शब्द है 
हमारा दर्द 
आओ,
आँखों से साझा करें इसे 
हम, एक -दूजे से

दिल्ली में बारिश और मध्य रात्रि

इस वक्त
जम कर बरस रहा है मेघ
जाने किस गम ने उसे सताया है
वह किस दर्द में चीख़ रहा है ?

गौर से सुनो
वो हमारी कहानी सुना रहा है |


Friday, December 8, 2017

सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल

मौसम किस कदर बदला देखिये
हत्यारे को माफ़ी मिली
बेगुनाह को फांसी !
रुकी नहीं है अभी
सत्ता की हँसी !
टीवी रोज दिखाए हत्याओं की कहानी
हत्यारे को नहीं
बलात्कार हुआ सबको पता चला
बलात्कारी का चेहरा ढका है
कोई पूछे सवाल - क्यों ? 

मौसम किस कदर बदला देखिये
आग खुद करे अब जलन की बात
हत्यारा करने लगा है
हमारी सुरक्षा की बात
जबकि उसके हाथों में
खून के धब्बे बाकी है अभी तक
उसके जयकार के शोर में
भूख से रोते बच्चे की मौत हो जाती है हर रात
सिपाहियों की कदमों की आहट ने चीर दिया है
रात के सन्नाटे को
तुम्हें भ्रम है
तुम्हारी बस्तियां सुरक्षित है !

राजा अपने कक्ष से
लगातर हंस रहा है
सहमे हुए हमारे चेहरे देख कर
गूंगी प्रजा राजा की ताकत बन चुकी है
सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल
राजा ने खुद को ईश्वर मान लिया है |

Thursday, December 7, 2017

हत्यारा इतना साहसी हो गया है

हत्यारा इतना साहसी हो गया है
कि वह ऐलान कर
हत्या कर रहा है अब
बतौर सबूत वह
हत्या का वीडियो बनाकर प्रसारित करता है !
सवाल है कि
उसे इतनी हिम्मत कहाँ से मिली कि
उसने सरेआम और फिर घर में घुसकर
दाभोलकर,
कलबुर्गी,पनसारे और लंकेश की हत्या की
उसने अकलाख, जुनैद और पहलू को मारा
फिर भी इस आधुनिक युग में पुलिस और अदालत को
क़ातिल का कोई सुराग नहीं मिला !
शासन ने ऐलान कर दिया
उसके रामराज्य में ऐसी कोई
वारदात नहीं हुई !


Tuesday, December 5, 2017

अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ

मेरी कई प्रेम कविताएं
खो गई हैं
देखना यह है कि
अब कितना प्रेम बचा हुआ है
मुझमें 
उन कविताओं के बाहर !
नफ़रत के इस दौर में
आसान नहीं है प्रेम को बचाए रखना
इसलिए,
हमने उसे कविताओं में भर दिया था
अब जब कवियों की भी हत्या होने लगी है
कविता को कौन बचाएगा
अपने ही विराट महल में कैद हिंदुस्तान के अंतिम शहंशाह
बहादुर शाह ज़फर ने जब लिखा था -
"क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू "
अब जब प्रेम पर पहरेदारी के लिए
तैयार हैं सरकारी दस्ते
मैं अपनी खोई हुई प्रेम कविताएं खोज रहा हूँ !

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...