Friday, April 29, 2016

तुम्हारे पक्ष में

तुम्हारे पक्ष में लिखी 
सारी कविताएँ मेरी डायरी में 
कैद है 
तुम्हारी आज़ादी के साथ 
उन्हें आज़ाद करूँगा 
तुम मजबूरियों से बाहर तो निकलो
एक भरा-पूरा संसार
खड़ा है
तुम्हारे स्वागत में |

Friday, April 15, 2016

तुम्हारे रोने से पिघलेगा नहीं उनका पाषाण मन

यह जानते हुए भी
कि तुम्हारी तमाम सफाई के बाद भी
तुम्हें कहा जाएगा चरित्रहीन
और तुम्हारे रोने से पिघलेगा नहीं
उनका पाषाण मन
तुम रोती हो उनकी बातों पर
यदि ऐसा होता
तो, सीता को कभी नहीं देनी पड़ती
अग्नि परीक्षा |
यह अग्नि परीक्षा का कांसेप्ट
क्यों नहीं बनाया गया था मर्दों के लिए
कि जो भी अपनी पत्नी से दूर रहेगा अधिक समय तक
उसे भी देनी होगी अग्नि परीक्षा !
शुधि-अशुधि के सारे नियम
स्त्री के लिए ही क्यों
जबकि उसे तो तुम देवी कहते हो !
मैं तुमसे ही कह रहा हूँ
सुन लो,
जबतक तुम खुद को दोषी मानना बंद नहीं कर देते
वे इसी तरह जारी रखेंगे अत्याचार
तुम्हारे रोने से
उनका दिल नहीं पिघलेगा
जो करो शान से करो
खुद पर भरोसा करो
माँ-बाप होना
माँ-बाप होना ही है
भगवान होना नहीं
न ही पति होना
तुम्हारी देह और इच्छाओं का मालिक हो जाना है
अभी बहुत आयेंगे संस्कारी
मुझे देने गाली
और मैं हंस दूंगा
और चाहता हूँ
कि, तुम भी हंसो,
जिओ
अपनी इच्छानुसार |

Monday, April 4, 2016

तुम्हारी कविता

देर रात ...
सौंप दूंगा
तुम्हें,
तुम्हारी कविता |
अभी वो
सो रही है
मेरी डायरी में ....

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...