Sunday, March 29, 2020

जो बच जायेंगे इस महामारी से उन्हें भूख निगल लेगी

जिंदगी और मौत से जूझते मुल्क का निज़ाम
टीवी पर करता है मन की बात
पत्रकार खेल रहा है अंताक्षरी
सड़क पर चलते लाखों पैर लहुलुहान है
कुछ को चलती गाड़ी ने कुचल दिया
कुछ भूख से तड़प रहे हैं
कन्या पूजा करने वाले पिशाच
सड़क पर बेहोश पड़ी मासूम बच्चियों को छोड़ कर
अपने बंगले में
रामायण देख रहे हैं
हम जैसे तमाम लोग जो घरों में क़ैद होने को मज़बूर हैं
उनकी नींद उड़ चुकी है
भूख मर गयी है
मौत के इस जंग में
लाखों मौतें प्रायोजित हैं
आगे के दिनों में
जो बच जायेंगे इस महामारी से
उन्हें भूख निगल लेगी
कुछ जेलों में मारे जायेंगे
कुछ विवश कर दिए जायेंगे
ख़ुदकुशी के लिए
हम क्यों हैं ख़ामोश अब भी
क्यों भ्रम है कि हम सुरक्षित हैं
ये धरती बंजर हो रही है
और नदियां रक्त में भीग चुकी हैं
यह अंताक्षरी का वक्त नहीं
यह जोर से चीखने का वक्त है

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...