Thursday, May 30, 2019

देखिये, मंज़र-ए-आम

मज़हब के बाज़ार में
बिक गया अवाम

कुछ को है हैरानी
हंसते उधर तमाम

देखिये, मंज़र-ए-आम 
बाहर मयखाने के छलक रहे जाम 


Wednesday, May 29, 2019

यह भूल सुधारने का वक्त है

सब ख़ामोश हो गए अचानक
कुछ फुसफुसा रहे हैं
मेरी तरह
कुछ अपने बचाव में
संविधान की दुहाई दे रहे हैं 
और भूल गए संविधान बदल देने की बात करने वालों का चेहरा
यही तो वक्त है
पहचानने की
कि पार्टनर की पॉलिटिक्स क्या है
मेरे मुक्तिबोध !
आओ , एक -एक चेहरे की सूची बना लें अब हम
ताकि देर होने पर कोई मलाल न रहे
इस बीच कुछ ने सरकारी नौकरी पा ली है
कुछ पाने की जुगाड़ में है
कुछ ने तो लिखित रूप में सत्ता के पक्ष में समर्थन की घोषणा की है
और वे ज्यादा ईमानदार हैं उनसे
जो मेरे बगल में ख़ामोश बैठा है
अन्याय की इस घड़ी में
और वही सबसे ख़तरनाक और चालाक है
जबकि उसे अब तक हम
सामूहिक हक़ की लड़ाई के सिपाही के रूप में देख रहे थे
यह भूल सुधारने का वक्त है
वक्त है लड़ाई की तैयारी की
आओ अपने बीच छिपे मानवता के गद्दारों को पहचाने
तानाशाही सत्ता से लड़ने की नई ऊर्जा को
संचित करें
और लक्ष्य हासिल तक
शाहिद होने को तैयार करें ख़ुद को
ताकि आने वाली पीढ़ी के आगे हमें शर्मिंदा न होना पड़े
कि हमने उनके भविष्य के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी ।

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...