Saturday, January 30, 2021

महात्मा के लिए

 सम्भव है कि

गोडसे के उपासक भी
सुबह तुम्हारी समाधि पर जाएंगे
तुम्हें श्रद्धांजलि देने
बिलकुल वैसे ही जाएंगे
जिस तरह जाते हैं वो
तुम्हारे आश्रम में
तुम्हारे चरखे पर बैठ तस्वीर खिंचवाने के लिए
किन्तु वो कभी भी नहीं कहेगा
गलत था गोडसे |
सुकून से रहो बापू अपनी समाधि में
यहाँ आग लगी हुई है चारों ओर
यह आग फ़ैल रही है तेजी से पूरे मुल्क में
जंगल की आग की तरह
बुझाने की जिम्मेदारी जिन पर थी
अब वे ही इस आग को हवा दे रहे हैं !
आपका चश्मा अब
विज्ञापन के काम आता है
और आपका चरखा
कैलेंडर की तस्वीर के लिए
आपकी छड़ी और घड़ी का पता नहीं मुझे
आपकी बकरी कहीं नहीं मिली
आपके बन्दर चारों ओर घूम रहे हैं किन्तु
सत्य के साथ आपका अनुभव भी तो ऐसा ही था न ?
बापू तुम दुःखी मत होना
हत्या को अब पाप नहीं मानते यहाँ के लोग!




Monday, January 11, 2021

हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक

 और अन्तत: सूरज खिला

राजधानी की सीमाओं पर बैठे किसानों के चेहरे पर
ओस की बूंदे आज उड़ी हैं
सूरज ने आज अपना काम ठीक से किया है
सूरज जानता है
फसल की बालियों को छूकर ही
उसकी किरणों को मिलता है श्रृंगार
बनते हैं गीत
मिलता है नया रूप
लिखी जाती है कविता
दरअसल सूरज ने नमक का कर्ज अदा किया है
जो उसने सोंका था
चैत में किसान की देह से
किसान की लड़ाई में
आज शामिल होकर उसने
जताया है अब आभार
बजंर धरा पर उसे कोई नहीं पूजेगा
जानता है वह ...
हमने अब तक नहीं चुकाया है
अन्नदाताओं का कर्ज़
हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक
क्यों .....!!

Saturday, January 2, 2021

दिल्ली की सीमा में बैठे किसानों के भीगे हुए चेहरों को सोचिये

 हो सकता है

इस वक्त जब दिल्ली में
आकाश बरस रहा है
और आप रजाई में बैठ
गर्म चाय की चुसकी लेते हुए
अपना मोबाइल स्क्रॉल कर रहे हों
ठीक इसी वक्त दिल्ली की सीमा में बैठे किसानों के
भीगे हुए चेहरों को सोचिये
एक बार
ठंड में ठिठुरते हुए
उनके होंठों को सोचिये
आखिर वे क्यों बैठे हैं
क्यों अब तक पांच दर्जन जाने चली गईं?
सोचिये इस सवाल को एक बार
इस वक्त जब उन्हें होना चाहिए था
अपने खेतों पर
वे मजबूर हैं सड़क पर सोने को
इस बारिश से राजपथ चमक उठे शायद
किंतु किसानों के खून का गंध शेष रह जायेगा
सत्ता किसी अपराध पर
शर्मिंदा नहीं होती
किन्तु जो अश्लील ख़ामोशी
हमने ओड़ ली है
उसका जवाब कौन देगा ?


इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...