Thursday, June 18, 2015

तुम्हारी मीठी मुस्कान आज भी चिपकी हुई है मेरी आँखों पर

इनदिनों,
अपने खालीपन में
मैं अक्सर खोजता हूँ तुम्हें अपने आस-पास
और याद करता हूँ अतीत के सुहाने पलो को
तुम्हारी मीठी मुस्कान
आज भी चिपकी हुई है मेरी आँखों पर
हाँ , अब मेरी आँखें जरुर कमज़ोर हो चुकी है
इतना कमज़ोर कि 

अब मैं देख नहीं पाता हूँ साफ़ -साफ़
इन्द्रधनुष के रंगों को भी ||

Friday, June 12, 2015

ओ अमलतास

मैं उदासी चाहता हूँ
और तुम ऐसा होने नहीं देते
जीत जाते हो हर बार
तुम्हारा क्या करूँ मैं ?

ओ अमलतास !

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...