Monday, December 28, 2015

जाते -जाते सूरज ने भी पढ़ा था मेरा चेहरा

आज तीसरे दिन का
तीसरा पहर भी बीतने को है
उदास सूरज पहुँच गया है क्षितिज पर
किन्तु खत्म नहीं हुआ
मेरा इंतज़ार 
जाते -जाते सूरज ने भी पढ़ा था मेरा चेहरा
और उदास हो गया था उसका चेहरा
पता नहीं कैसे भांप लिया था उसने
मेरे भीतर की उदासी
जबकि मैं मुस्कुरा रहा था लगातर
चलो बताओ तुम भी
मेरा चेहरा देखकर
कुछ पता चला तुम्हें !


Sunday, December 27, 2015

यूँ ही खाली बीता भीड़ में तनहा मेरा दिन आज

सोचता हूँ
कि मुक्त कर दूँ तुम्हें
अपने ख्यालों से
और खत्म हो जाए सभी डर
तुम्हारे मन से
दरअसल तुम समझ न पाओगे
कि यह डर तुम्हारा नहीं,
मेरा है...
और मैं नहीं चाहता कि ऐसे डर-डर के
हम मिले...
तुम्हें मुझ पर तरस आता है
किन्तु मुझे आती है तुम्हारी याद
यूँ ही खाली बीता भीड़ में तनहा मेरा दिन आज
मैं सोचता रहा चेहरा तुम्हारा
और मुस्कुरा उठा खुद ही भीड़ में
पता नहीं भीड़ ने क्या सोचा मेरे बारे में
पर मुझे लगा
कि आज याद नहीं किया
तुमने मुझे .........
यूँ ही .....
तुम्हारा कवि 

Thursday, December 17, 2015

तुम्हारे प्रेम के नशें में भी स्थिर हूँ

देर रात
मैं जब भी लिखता हूँ
कोई प्रेम कविता
लोग सोचते हैं
मैं नशें में होता हूँ
सुनो दोस्त,
लोग सही सोचते हैं
मैं उस वक्त
प्रेम के नशें में होता हूँ
दरअसल नशें में तो लोग भी हैं
और नशें में डूबे हर व्यक्ति को
हर कोई नशें में डूबा ही दीखता है
क्योंकि जब वह डोलता है नशें में
डोलती है धरती, डोलता है आसमान
देश में सत्ता के नशें में
हिल रहा है सब कुछ
किन्तु मैं,
तुम्हारे प्रेम के नशें में भी स्थिर हूँ इतना
कि लिख लेता हूँ
तुम्हारे लिए कविता
-तुम्हारा कवि

Wednesday, December 16, 2015

मैं देखना चाहता हूँ मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे पर

मैं सच कह रहा हूँ तुमसे
बहुत शर्मिंदा हूँ अपनी गलतियों पर
मैं देश की सरकार की तरह
बे-शर्म नहीं बना हूँ अभी
इसलिए तो कह रहा हूँ 
कि अब से कोशिश करूँगा
भूल से भी कोई भूल न हों मुझसे
न उदास हो तुम्हारा चेहरा मेरी किसी बात से
मुस्कान रहे चेहरे पर
जो मैं देखना चाहता हूँ हर पल
नहीं कर सकता मैं कोई झूठा वादा तुमसे
अभी मैं सरकार में नहीं हूँ
न ही विपक्ष की किसी पार्टी में
हाँ, मैं तुम्हारे साथ हूँ
यह तो मानना होगा तुम्हें
सुनो मेरे कमरे के फ़र्श पर नहीं है कोई कालीन
ठंड बहुत लगती है पैरों में
श्मशान पास ही है
पर अभी वक्त है मेरे जाने में
और जबतक नही जाता
मैं देखना चाहता हूँ मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे पर
बहुत कुछ किया है तुमने अबतक सबके लिए
मेरे लिए बस मुस्कुरा दो ....

Monday, December 14, 2015

प्रेम ही खुद में सबसे बड़ी क्रांति है

ख़ुशी लिखना चाहता था 
लिख दिया तुम्हारा नाम 
लिखना चाहता था 'क्रांति' 
और मैंने 'प्रेम' लिख दिया 
सदियों से 
प्रेम ही खुद में सबसे बड़ी क्रांति है ..

Tuesday, December 8, 2015

मैंने तुम्हें थाम लिया अंजुरी में

कवि जब रोता है
तब भी कविता होती है
तो, अब जब तुम भी जान चुकी हो ये बात
मैं बता देना चाहता  हूँ
कि मैं अक्सर सोचता हूँ तुम्हें
और तुम्हें सोचते हुए भर आती  है मेरी आँखें
क्या तुम देख पाती हो कोई कविता
मेरे अश्कों में !
मैंने धरती को अलविदा कहना चाहा
और तुम याद आ गयी तभी
मैंने आंसुओं को गिरने नहीं दिया धरती पर
मैंने तुम्हें थाम लिया अंजुरी में
और सौंप दिया सीप को
ताकि मोती बना सकूं

ठीक उस वक्त जब कवि
तड़प रहा था विरह में
प्रेयसी दीप सजा रही थी दिवाली के
कवि रोता रहा रात भर
कविताएँ बनती चली गयी
इस तरह कट गयी  रात

बाकी हैं अभी कई रातें
कवि रचेगा असंख्य कविताएँ
अपने अश्कों  से

- तुम्हारा कवि

Monday, December 7, 2015

हर रिश्ते पर संदेह होने लगा है हमें

यहाँ आदमी को आदमी से डर लगता है
और मैं रोज-रोज पढ़ रहा हूँ
मानव सभ्यता की कहानी
धरती पर मौजूद लगभग सभी प्राणियों का विश्वास 
खो दिया है हमने
अब मनुष्य खुद से डरा हुआ है
विश्वास के सभी पैमानों को फेंक कर
बहुत आगे निकल चुके हैं हम
इतना आगे कि, अब
हर रिश्ते पर संदेह होने लगा है हमें
और हमारे समाज के हर कोने में ,
हर ठेके पर,
मंदिरों में, स्कूलों में
लगा रहे हैं हम
'मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है' का पोस्टर
जबकि आज सभी जानते हैं
मानवता ही संदेह के घेरे में हैं
मैंने पूछा तम्हारा नाम
तो, नाम के बदले पूछा जाता है
नाम पूछने के पीछे का कारण
मानवता अब किताबों और दीवारों पर चिपक कर रह गयी है
जबकि उसके प्रेम ने मुझे अहसास कराया मेरे मनुष्य होने का
और मेरा संदेह उसी पर
मेरे भीतर का अमानव मरा नहीं अभी
कि कर सकूँ आँख मूंद कर तुम पर भरोसा
देखो आज भी कितना कमज़ोर हूँ मैं ......

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...