Thursday, December 5, 2019

शेर आदमखोर भी होता है

सभी समुदाय के लोग
अपने-अपने पूज्यनीय नेताओं को
शेर बना कर प्रस्तुत करने लगे हैं
ये शेर शायर या कवि की पंक्तियों से नहीं बने हैं
ये शेर यानि सिंह हैं
सिंह यानि जंगल का राजा

शेर आदमखोर भी होता है
आदमखोर न भी हों तो भी
हिंसक तो होता ही है

हक़ की लड़ाई लड़ने वाला वीर योद्धा होता है
उन्हें  शेर क्यों बना रहे हैं सब इनदिनों!

शेर अपनी ताकत
नुकीले पंजे और दांत के दम पर
खुरदार प्राणियों का शिकार करता है
वह रहम नहीं करता कभी

क्या हमारे आदर्श पुरुष
शेर की तरह हिंसक थे?

इंसानों अपनी बस्ती में शेर की
जरुरत क्यों महसूस होने लगी अचानक?

बुद्ध, गांधी, मार्टिन लूथर किंग आदि ने हिंसा के बिना
करोड़ों दिलों को जीता
अहिसंक होना कायर होना तो नहीं है

और हक़ की लड़ाई के लिए शेर होना जरुरी नहीं
बहादूर होना हिंसक होना नहीं है

अहिंसा के नाम पर कायरता भी जायज नहीं

हिंसा सबसे अंतिम हथियार होना चाहिए
अधिकार और आत्मरक्षा के लिए।


Sunday, November 17, 2019

इंसाफ अनाथ होता है

क्रांति के नाम पर आचार बन रहा है
मेरी गली में
अखण्ड रामायण पाठ हो रहा है
पंचों ने कह दिया -
देव वहीं गर्भगृह में जन्मे थे
उसी का उत्सव हो रहा है
गोबर के उपले अमेज़न में बिक रहा है
भक्ति चैनल पर आसाराम के बोल
अब भी बोले जाते हैं
पहलू खान की आत्मा
भोलाराम का जीव बन कर इंसाफ मांग रही है
रोहित वेमुला एक और चिट्ठी लिख रहा है
नज़ीब की माँ ने सुप्रीम कोर्ट को मंदिर मान लिया है
इंसाफ की चाह में
देवता किसी का होता है क्या ?
जज भी किसी का नहीं होता
पुलिस सरकार की होती है
सेना भी
इंसाफ अनाथ होता है
इसे पाने के लिए
बल, धन और गवाह चाहिए
और इन सबके लिए
बेईमानी चाहिए
अफराजुल, जुनैद को भूल गए
कलबुर्गी, गौरी लंकेश तो याद है न ?
सब हार गए
सत्ता पाने के बाद अपराध मिट जाते हैं
बिना वीजा कहीं जाइये
कुछ भी बकिये
मन है
मन की बात कहिये
सब सुनेंगे
सुनाए जाएंगे
प्यार !
कबूतर उड़ा दो
शांति का पैगाम कहा जायेगा
हमारे तो तोते ही उड़ गए हैं
पर हम बेशर्म हैं
जीए जा रहे हैं ।

Wednesday, November 13, 2019

राजा खुश है ढह गया एक देश

कवि ने लिखा देश गीत
शौर्य,वीरता
संस्कृति परम्परा और
समृद्ध सभ्यता की गाथा
सैकड़ों बच्चों ने भूख से दम तोड़ दिया एक साथ
उसने एक कविता लिखी फूल पर
एक तितली मर गई
नदी, झरने, पहाड़ खामोश रहे
पर जंगल के पेड़ चीखे
उसने सुना नहीं
वो राष्ट्रगान में सावधान खड़ा था
जंगल कट गया
पहाड़ टूट गया
नदी बंध गई
झरने ...?
गुमशुदा हैं
जंगल गया
पर जंगल के लोग कहां गए ?
सिपाही आये थे
कुछ लाशें मिली खून से भीगी हुई
कवि ने लिखी सिपाहियों की वीरता पर कविता
राजा ने उसे भरे दरबार में पुरस्कार दिया
न्यायालय ने कुछ नहीं कहा
स्कूल तोड़े गए
न्यायाधीश ने माना
भगवान का जन्म हुआ था
मंदिर बनेगा
बहुमत की आस्था के सम्मान में
राजा ने सुनाई तंत्र-मंत्र की कहानी
वैज्ञानिकों ने ताली बजाई
सूर्य को जल चढ़ाए
राजा खुश है
उसका छोड़ा अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा
जीत गया
ढह गया एक देश।

Sunday, November 10, 2019

अगले चुनाव में मुद्दा क्या होगा ?

अगले चुनाव में
मुद्दा क्या होगा ?
क्या होगा पाकिस्तान होगा
फिर चीन होगा
न रोजगार होगा , न भूख होगा
तो क्या शिक्षा और स्कूल होगा ?
पागल है क्या ?
वो क्यों होगा ?
हाथी का सूंड़ होगा
एनआरसी होगा,
मंदिर का लोकार्पण होगा
अच्छा !
और गाय, गंगा का क्या होगा ?
न न ये अब पुराना माल नहीं बिकेगा
अब गाय, गोबर , गंगा नहीं
अब फिर कहीं दंगा होगा ।
लोकतंत्र का हवन होगा
किसान होगा , मजदूर कोई मुद्दा होगा ?

फिर ?
अब फिर अर्बन नक्सल मुद्दा होगा
मंदिर का डिजाइन होगा
कश्मीर में निवेश होगा
बुलेट ट्रेन होगा
पुल का निर्माण होगा
महंगाई का क्या होगा ?
अपराध का क्या होगा ?
हरामी कुत्ते बहुत सवाल करता है
देश में सब ठीक है और तुझे बेचैनी हो रही है ?
रुक तेरी चर्बी उतारते हैं ।

Sunday, October 20, 2019

गंगा की छाती पर चांदनी अठखेली कर रही है

रात की गहरी ख़ामोशी में
प्रेम की नहीं
विद्रोह की कविता लिखी जाती है
मैं एक प्रेमी हूँ
और विद्रोह लिख रहा हूँ
गंगा की छाती पर चांदनी अठखेली कर रही है
दिन भर के श्रम से थके मल्लाह
फ़र्श पर बेहोश पड़े हैं
गंगा ने अपनी वेदना किसी से नहीं कही
नांव भी किनारों पर बेहाल पड़े हैं
विदेशी सैलानी धर्म की खोज में
गंगा की छाती चीरते हैं रोज
नदी का दर्द
मेरा ही दर्द है
हम दोनों ने ख़ामोशी तान ली है
चाय वाले ने बता दिया उसे
कुल्हड़ की मिट्टी में
उसकी खुशबू मिली है मुझे
सूरज बतायेगा सुबह
हम क्यों नहीं रो पाए
सभी घाट अब शर्मिंदा हैं
गंगा की बर्बादी के लिए
मेरी गवाही चाहते हैं
और मैं बता नहीं सकता
कि तुमने भी देखा उसकी बर्बादी की कहानी
बनारस, काशी है
क्योटो नहीं
नाम बदलने वाला योगी
क्यों भूल गया है
यह चिंता गंगा की नहीं
उसका दुःख है कि
माँ बोलने वालों ने उसे समझा ही नहीं
जिस किसी ने सवाल किया
उसे देशद्रोही बना दिया
मैंने वफ़ा की बात की
मुझे ही बेवफ़ा बना दिया !

Thursday, October 17, 2019

बिस्मिल्लाह अब शहनाई नहीं बजाते बनारस के किसी घाट पर

पहले मंगल पर पहुंचे
फिर चाँद पर
बड़ा पुल राष्ट्र को समर्पित हुआ
फिर मन की बात का प्रसारण हुआ
जमीन पर कुछ किसान मारे गये
भूख से कुछ बच्चे मरे
उसने राष्ट्र के नाम सन्देश दिया
देश सुरक्षित हाथों में है
शहीदों के नाम पर युवा फिर उसे चुने
उसके सहपाठी ने कहा
ताज महल हमारी संस्कृति नहीं
उसने ऐलान करवाया
सबको नागरिकता दी जाएगी
मुसलमानों को छोड़ कर
गंगा थोड़ी उदास हुई
किंतु अब उसने रोना छोड़ दिया
बिस्मिल्लाह अब शहनाई नहीं बजाते
बनारस के किसी घाट पर
मैंने असफल प्रयास किया
एक प्रेम कविता रचने की
पहले ईश्वर नामक प्राणी मरा
फिर मेरी संवेदनाएं |

Friday, October 4, 2019

मेरे सवाल तब भी तुम्हें करेंगे बेचैन

कवि रात की तन्हाई में
अक्सर रोता है
खुद को तसल्ली देता है
कवि ने आईने के सामने खड़ा होकर कहा
हाँ, मैं कायर हूँ
तुम्हारी नज़रों में
पर एक बार पूछ लेना - सत्ता से
क्यों डरती है -मेरी कलम से
मेरे सवाल से
तुम्हारी तरह ?
जाओ, खुली छूट है अभी
फैलाओ झूठ , नफ़रत मेरे खिलाफ
करो बदनाम मुझे
बेवफ़ा और देशद्रोही कहो मुझे
मेरे सवाल तब भी तुम्हें करेंगे बेचैन
तुम्हें आईने से डर लगेगा
नकली मुस्कुराने की अदा से
कुछ लोग दीवाने बन जायेंगे
फिर भी तुम्हें हमेशा मेरे सवालों से
भय लगेगा
मेरा इरादा भय फैलाना नहीं है
और सवाल डर के लिए नहीं
सच के लिए होते हैं
तुम सच छुपा रहे हो
इसलिए काँप रहे हो

Saturday, September 28, 2019

फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है

दोस्त अब अक्सर देते हैं सलाह
चुप रहो !
सत्ता ताकतवर है
हालांकि उनकी सलाह में
मेरी जान की फ़िक्र है
फिर भी मुझे लगता है यह सलाह किसी दोस्त की नहीं
सत्ता पर बैठे किसी अधिनायक के वफ़ादार की सलाह है
मेरे दोस्त मुझे जानते हैं
मंजूर है राजद्रोह का आरोप
झुकना नामंजूर है मुझे
गुलामी से बड़ा अभिशाप कोई और नहीं
चापलूसी कायरता की पहचान है
मौत के डर से गुलामी
मौत से बदतर है
इतिहास गवाह है
डरने वाला कभी बच नहीं पाया
बिजली गिरने के भय से
वृक्षों ने उगने से कभी मना नहीं किया
बिजली को तो गिरना ही है
बेहतर है मैदान नहीं , हम पेड़ बन कर उगे
खड़े रहें तन कर
जल जाएँ तो भी पेड़ ही कहलायेंगे
समतल होने में गुलामी का खतरा ज्यादा है
जानता हूँ , यह क्रांति के लिए सबसे प्रतिकूल समय है
फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है !

Saturday, September 21, 2019

कविता नहीं बजट है

उदास कवि की पूर्व प्रेमिका भी
अब कवि हो गई है
कवि जाम लगा रहा है
वो मंच पर कविता पढ़ रही है

मने बजट के बाद बजट सुने  हो  कभी
यहां बजट नहीं दिवालिया की नुमाइश है

प्रेम कभी था नहीं
ज़रूरत के समझौते थे

बात कवि के प्रेम और प्रेमिका की नहीं
सत्ता और जनता की मान लीजिये

कवि जन का है
प्रेमिका सत्ता चाहती है

फेमिनिस्ट नाराज़ हो सकते हैं
पर उन्हें पता होना चाहिए
कवि  लेफ्टिस्ट है

दरअसल,
कवि को , लेफ्ट को
घमंड बहुत है
कि, उसके बिना कोई बढ़ नहीं सकता आगे

बंगाल -त्रिपुरा  के बाद
कवि की प्रेमिका ने दिखा दिया
कविता लिख -पढ़ कर कैसे बढ़ते हैं आगे

कवि के नाना ने कहा था -ज्ञान से नहीं , धन से बढ़ता है सम्मान
कवि के दोस्त के नाना ने भी कुछ ऐसा कहा था

नाना को हराने की ज़िद में
कवि नंगा हो गया

कवि  नकली है  शायद
हैलो नहीं , लाल सलाम कहता है
प्रेमिका अब जय श्रीराम बोलती है !

Thursday, September 19, 2019

हर जगह जश्न है !

कश्मीर बंद है
फिर भी सामान्य है
सत्ता जो कहे
वही सर्वमान्य है
धन्य है-धन्य है
नाराज़ कुछ अन्य हैं
लोकतंत्र में अब यही सब
मान्य हैं ?
सवाल अब अमान्य है
भीड़ के हवाले है देश
यही सौजन्य है
वे सब अन्य हैं
कहलाते थे जो जन हैं
तानाशाह का मन है
बाकी सब सन्न हैं
धन्य है धन्य हैं
राजा बहुत प्रसन्न हैं
जन मरें लिंचिंग में
हर जगह जश्न है

Saturday, September 14, 2019

किसी एक पर दोष क्यूँ हो भला ?

कुछ अनकहीं बातें
जो कभी कहना चाहता था
तुमसे
उनको भूला दिया है
मौसम बहुत बदल गया है
अब गर्मी से अधिक
उमस होती है
प्रेम नहीं, अब
समझौते होते हैं
मैंने , खुद को कवि मानना छोड़ दिया है
प्रेम के वादों को
सरकारी घोषणाओं की सूची में
डाल दिया है
तुम सरकार हो
मैं आम नागरिक
तुम्हें खूब याद हैं
मेरे अपराध
तुम अपना वादा भूल गये हो
अब और रोना नहीं है
प्रेम का अपमान अब थमना ही चाहिए
समझदार होकर सवाल तो अब करना ही होगा
समझौते से अब निकलना होगा
शर्तें दोनों ओर हों
किसी एक पर दोष क्यूँ हो भला ?

Sunday, August 25, 2019

पर सवाल है - बे लापता क्यों है ?

न तो मैं खुश हूँ
न उदास हूँ इनदिनों
बस हैरान हूँ
शर्मिंदा हूँ
तुम्हें देर से पहचानने के लिए
मुक्तिबोध ने कल फिर पूछा -बताओ , पार्टनर -अपनी पॉलिटिक्स !
क्या कहता भला मैं !
ख़ामोश रहा
आज ख़ामोशी ही सफलता का मार्ग है
क्यों ? आप नहीं महसूस कर रहे हैं क्या एक गहरी चुप्पी उन लोगों की
जिन पर कभी नाज़ था आपको ?
मुक्तिबोध का सवाल अकेले मेरे लिए नहीं
उन सबके लिए है आज
जिन्हें हमने आँखों पर बैठा कर क्रांतिकारी कहा था
मनुष्य समझा था
किन्तु वे सभी महज एक स्वार्थी, डरपोक जीव निकले
पद, पुरस्कार, सम्मान के लालच में उन्होंने धोखा दिया मनुष्यता को
हमारे विश्वास को
दरअसल वे हमारे पक्ष में कभी नहीं रहे
उन्हें अपना पक्ष साधना था
हमारी हर भावना का उपहास किया मन ही मन हमेशा
अन्याय के विरुद्ध मुर्दाबाद अब कहा नहीं जाता उनसे
इसलिए हमसे आँखें चुरा रहे हैं
वे अब गंगा नहा रहे हैं
पर हम हताश नहीं हुए हैं
जो धोखा सा हुआ था
अब टूट चुका है
किन्तु मेरी प्रतिबद्धता अब भी अडिग है
अभी -अभी तो आईना देखा हूँ
भय भला क्या बिगाड़ लेगा मेरा
'साहिर ' अब नहीं पूछते -
"जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं ? "
विद्रोही मेरे कान में कह रहे हैं -
"उनको भी पता है , तुमको भी पता है ,
सबको पता है , ये कहाँ बेपता बात है ?"
चलो , फिर अच्छा है , अब सबको पता है
पर सवाल है - बे लापता क्यों है ?

आओ, चंद्रयान की यात्रा करें हम !

चन्द्रयान 2 ने चाँद की सतह की
पहली तस्वीर भेजी है
धरती पर गटर साफ करने उतरे
5 मजदूरों ने दम तोड़ दिया है
लोग चाँद की सतह की तस्वीर देख कर आनंदित और उत्साहित हैं
धरती के स्वर्ग में सन्नाटा है
नौकरी से निकाले गये युवक ने
जहर खाकर आत्महत्या कर ली है
उधर हत्या के आरोपी जेल से छुटे हैं
जय श्री राम के नारों के साथ उनका स्वागत हो रहा है
राष्ट्र नायक नये-नये परिधानों में ट्विटर पर मुस्कुराते दिखाई दे रहे हैं
मंदिरों को भव्य रूप में सजाया गया है
बाहर कुछ बच्चे भोजन के लिए भीख मांग रहे हैं
पत्रकारों की संस्था ने सत्ता का दामन थाम लिया है
राष्ट्रहित ही सर्वोपरी है
धार्मिक पहचान
अब नागरिकता का आधार बन चुकी है
जल, जंगल, जमीन की लड़ाई में शामिल लोग
अपराधी घोषित हो चुके हैं
भूख, बेरोजगारी, शिक्षा, शोषण, आदि के सवाल राष्ट्र का अपमान है
आओ, चंद्रयान की यात्रा करें हम !

Wednesday, August 14, 2019

कल क्या करेंगे

जो बोल रहे हैं 
बहुत संभव है कि एक दिन मार दिए जायेंगे 
मेरी चिंता वो नहीं है 
मैं सोच रहा हूँ उनके बारे में 
जो अब तक ख़ामोश हैं 
कल क्या करेंगे
जब इंसानी लाशों की बदबू
उनके घरों तक फैलेगी ?

Wednesday, July 31, 2019

ऐसे में उन्हें जला देना ही उचित होगा शायद

बेअसर हो गयी तमाम कविताओं को
मैंने जला देना बेहतर समझा
शब्दों का ढेर बेजान सा कागज की छाती पर पड़ा है 
लोग बेपरवाह हैं
उन्हें कोई मतलब नहीं कि पड़ोस के घर में आग लगी है
सड़क पर कोई रक्त से भीगा पड़ा है
किसी गौ रक्षक ने भीड़ के सामने उसकी हत्या कर दी है
भीड़ ने उस हत्या की फिल्म बनाई है
बस उस भीड़ ने उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया
उसी सड़क के किनारे बड़ा सा होर्डिंग लगा है जिस पर देश के प्रधान
बहुत ही स्वच्छ और उज्ज्वल परिधान में खड़े हैं
उस होर्डिंग पर सबसे बड़ी तस्वीर भी उनकी है
और उनके पीछे एक ग्रामीण स्त्री हल्की मुस्कान लिए अपने चेहरे भर के साथ मौजूद हैं
जहाँ एक रसोई गैस का सिलेंडर है ...और लिखा है ... महिलाओं को मिला सम्मान !
'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना'
सिलेंडर से सम्मान इस बात को समझने की जरूरत है
कि सम्मान के लिए कई उपाय है सत्ता के पास
और सम्मान भी सब्सिडी के साथ !
और सब्सिडी सदा के लिए नहीं होती
माताएं खूब जानती हैं इस बात को
पर कहती नहीं
क्योंकि उनके बोलने से ही हलचल पैदा हो सकती है
इसलिए यहाँ महिलाओं को घुंघट में रहने की सलाह दी जाती है अक्सर
और यह भी बता दिया जाता है कि
'खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली रानी थी '*
(सुभद्राकुमारी चौहान की कविता )
और भी बहुत कुछ
माने कि सम्मान जो वे अपनी इच्छा से आपको दें
उसी में संतोष रहो , इसी में मर्यादा है
यही उनका मानना है
जरूरत पड़ने पर रानी पद्मावती की कहानी भी सुनायेंगे
वे किसानों को अन्नदाता कह कर संबोधित करेंगे
और अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरे तो गोली चलवा देंगे
वे विश्वविद्यालय में पुस्तकालय नहीं तोप लगाने की पैरवी करेंगे
ऐसा बहुत कबाड़ लिख चुका हूँ
और उन्हें कविता मानता आया हूँ
किन्तु अब लगता है केवल शब्दों का ढेर जमा किया है हमने
और अब जब चारों ओर स्वच्छता का नारा है
बापू का चश्मा भी इस अभियान का सिम्बल बना दिया गया है
और कहीं कोई असर नहीं मेरे लिखने का
ऐसे में उन्हें जला देना ही उचित होगा शायद !

Thursday, July 25, 2019

गंभीर

गंभीर है सब
आकाश पर बादल गंभीर हैं
अंधकार गंभीर चारों ओर 
रंभाती गाय गंभीर है
गंभीर है शोर
अदालत में नाचे मोर
चीत्कार
हाहाकार
नहीं गंभीर कोई ललकार
यहाँ हो रहा रोज बलात्कार
यहाँ कोई नहीं गंभीर !
बेलगाम सत्ता
फूहड़ मीडिया
लाचार जनता
तांडव करता महाकाल
शीघ्र आएगा धरती पर अकाल
यहाँ नहीं कोई गंभीर
सत्ता के वीर
हैं अधिक अधीर
युद्ध के लिए
शांति के लिए नहीं कोई गंभीर
नज़रुल पूछ रहे हैं -बलो बीर !

Tuesday, July 23, 2019

तभी तो सपने में अक्सर अपनी प्रेमिकाओं से मिलता हूँ

ऐसा नहीं है कि
मैं सिर्फ मज़ाकिया हूँ
भावुक और संवेदनशील भी हूँ शायद
तभी तो सपने में अक्सर अपनी प्रेमिकाओं से मिलता हूँ
मैं उन्हें पुरानी नहीं कहता
प्रेम और प्रेमिकाएं कभी
पुरानी नहीं होती
अंग्रेजी में ex शब्द भी मुझे पसंद नहीं
मैंने यादों के साथ के दिनों की तस्वीरें भी
जतन से संभाल के रखीं हैं
दल बदलू नेताओं की तरह
अब मैं भी शातिर हो चुका हूँ
आप कह सकते हैं
अपने अनुभव के आधार पर
जबकि मुझे छोड़ जा चुके लोगों ने
मुझे बेवफ़ा कहा है
प्रेम में राजनीति इसे कहते हैं
जबकि रिश्तों में राजनीति बहुत घातक है
रिश्तों का लोकतंत्र ऐसे ही क़त्ल होता है
यह कविता अटकी नहीं थी कहीं
अपच अनुभवों की सघन उल्टी है मेरी

Thursday, July 18, 2019

भेड़िया अब दो पैरों पर चल सकता है

चुप्पी साधे सब जीव
सुरक्षित हो जाने के भ्रम में
अंधेरे बिलों में छिप कर
राहत की सांस ले रहे हैं
बाहर आदमखोर भेड़िया
हंस रहा है
इसकी ख़बर नहीं है उन्हें
भेड़िया अब दो पैरों पर चल सकता है
दे सकता है सत्संग शिविर में प्रवचन
सुना सकता है बच्चों को कहानी
शिकार को जाल में फंसाने के लिए
कुछ भी कर सकता है वो
वह अब अपने खून भरे नुकीले पंजों को
खुर पहनकर छिपा कर चलता है
इनदिनों वो तमाम आदमखोर जानवरों का
मुखिया बन चुका है
आप भी जानते हैं कि अब वह गुफा के भीतर
कब और क्यों जाता है
हम बार -बार आगाह कर रहे हैं
कि जंगल में आग लग चुकी है
और आदमखोर भेड़िया अपने साथियों के साथ
मानव बस्तियों की तरफ बढ़ रहा है
अफ़सोस , कि लोग मुझे
आसमान गिरा , आसमान गिरा कहने वाला
खरगोश समझ रहे हैं !

Wednesday, July 17, 2019

जिन्दा रहने के लिए राष्ट्र प्रेम अब अनिवार्य शर्त है !

बरसात हुई है
कुछ खतपतवार तो उगेंगे
कविता के नाम पर
खेत की सफाई के लिए
तैयारी जरुरी है
कवि से पहले
एक बार किसान बनिए
प्यासी धरती के सीने पर पड़ी दरारों को
मिटते देखिये
वर्षों से उदास झुर्रियों वाले बूढ़े किसान के
चेहरे को देखिये
कोई फ़र्क आया क्या ?
सूखे और बरसात के अंतर को समझने के लिए
कवि से अधिक एक किसान का होना होता है
किसान को कवि होते हुए कब देखा , माना है हमने !
जबकि उसके सृजन में ही जीवन का सार है
किसान न सही आप उसे खेतिहर मजदूर ही मान लीजिये
तब शायद कुछ अहसास हो जाए
कि हर बरसात केवल प्रेम कविता के लिए नहीं होती
संघर्ष की एक लम्बी प्रतीक्षा होती है
अवसाद और संघर्ष के सवाल
पानी से नहीं धुलते
प्रेम केवल बरसात में नहीं पलता !
और वैसे भी आज प्रेम के नाम पर
राष्ट्र प्रेम पहली अनिवार्य शर्त बन चुकी है
राष्ट्र जब नागरिक से आगे निकल जाता है
तब प्रेम बचता कहां है
सोच कर देखिये
सिर्फ प्रेमी होने से आप हिंसा के शिकार हो सकते हैं
क्योंकि इस कथित सभ्य समाज में
प्रेम से पहले जाति , धर्म और समुदाय को मान्यता दी जाती है
जाति है कि जाती नहीं
धर्म पीछा छोड़ता नहीं
समाज मान्यता देता नहीं
फिर सत्ता कहती है
किसान निजी प्रेम के कारण मरा है
राज सत्ता या सरकारी पालिसी का कोई हाथ नहीं है
मने साफ़ है कि
सिर्फ प्रेम अब दुःख या मौत का कारण हो गया है
जिन्दा रहने के लिए
राष्ट्र प्रेम अब अनिवार्य शर्त है !

Wednesday, June 26, 2019

यह पहचान करने और पहचान लिए जाने का दौर है

सत्ता अपने दुश्मनों की शनाख़्त कर रही है
राजपत्र पर आदेश जारी हुआ है
साबित करो -तुम देशभक्त हो !
किसान ने सोचा -तो क्या मेहनत से अनाज उगाने में देशभक्ति नहीं है 
चिथड़ो में लिपटे हुए जुलाहा ने अपनी उँगलियों को गौर से देखा
और ख़ामोश रहा
मुसलमान को बोलने, सुनने और सोचने का मौका ही नहीं मिला
वह कुछ भी बोल, सोच पाता उससे पहले उसका क़त्ल हो गया
और ...
कुछ लोग जो बोल ,लिख और सोच सकने के लायक थे
उनकी कलम तोड़ दी गई , गोली मार दी गई
बच्चे जो अभी बोलने लायक नहीं हुए थे
उन्हें मरने के लिए सरकारी अस्पतालों में छोड़ दिया गया
ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक दी गई
तमाम अपराधों में लिप्त लोगों को
चुन -चुन कर संसद में भेजा गया है अब
वे ही तय करेंगे किसको है अधिकार इस देश में रहने का
तो क्या यह मान लिया जाए कि अब इस देश में रहने के लिए
अपराधों में शामिल होना एक अनिवार्य शर्त है ?
तो क्या संविधान में लिखी हुई तमाम बातें झूठी हैं ?
यह पहचान करने
और पहचान लिए जाने का दौर है
हाँ, आप-हम पहचान लिए गये हैं
हमने हत्या, लूट और उनकी झूठ को पहचान कर सवाल किया है
इसलिए उन्होंने हमें अपने दुश्मन के रूप में चिन्हित किया है
हम ख़ामोश भी रहते तो भी पहचान लिए जाते एक दिन
हमारी भाषा , खान-पान और धर्म के आधार पर
गरीब का धर्म गरीबी है
यही आज सबसे बड़ा अपराध है
सवाल करना राजद्रोह बन चुका है
रामराज की नींव रखी जा रही है
तैयार रहिये राज पत्र पर अगले आदेश के लिए |

Monday, June 17, 2019

अब हम दुःख देने वाली घटनाओं को याद नहीं करते हैं

इतने बच्चों की मौत के बाद
बाज़ार का सेंसेक्स नहीं गिरा है
जबकि चुनाव के बाद एग्जिट पोल देख कर
उछल गया था बाज़ार
बाज़ार मौत पर नहीं रोता कभी
व्यापारी भी नहीं रोता
अबके तो इनके खून में व्यापार है
इसलिए सब ठीक है
आखिर गलती किसकी है
इसका विश्लेषण होता रहेगा
आगामी किसी चुनाव प्रचार में
भारतीय क्रिकेट दल ने पाकिस्तान पर
सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया है
मंत्रीजी खुश हैं
मौत के इस मौसम में देश लगातर दुश्मनों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रहा है
अस्पताल की कमी कोई मुद्दा नहीं है 
ऐसी कमियों को गिनवाना
देश का अपमान है
डॉक्टर हड़ताल पर हैं
किन्तु अपनी निजी क्लिनिक पर
वे रात-दिन जनता की सेवा में हैं
आओ हम सब सेंसेक्स की उछाल में देश की तरक्की देखें
क्रिकेट भी है देशभक्ति को प्रमाणित करने के लिए
शुक्र करो इस बार कोई ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा
न ही अगस्त में
इस बार जून में ही लीला शुरू है
वो कौन एक लड़की थी न 8 बरस की
जो भात-भात चीखते हुए मरी थी ?
देखो, अब किसी को याद भी नहीं
कितने किसान मरे हैं
देश बदल रहा है
अब हम दुःख देने वाली घटनाओं को याद नहीं करते हैं
रफाल विमान आने वाला है
बुलेट ट्रेन भी
दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा भी स्थापित कर ली है हमने
ऊंचाई से जमीन की चीजें बहुत छोटी दिखाई पड़ती है
अभी मैं भी यह कविता पेल कर सोने वाला हूँ कूलर की हवा में
चादर तान कर .....
आप भी सो जाओ
या व्हाट्स एप पर लग जाओ
रायसीना हिल्स पर चांदनी है
इंडिया गेट जाकर आइस क्रीम भी खा सकते हो ...

मेरी कविताएं अनाथ नहीं

मैं मौत, भूख
अन्याय पर लिखता हूँ
सपाट कवितायें

मेरी कविता में
राजा का बेलगाम सांड प्रजा को रौंदता है
किसान भूख से मरता हैं
मर जाती हैं मासूम बच्चियां बलात्कार और कुपोषण से
मेरी कविताएं अनाथ नहीं
बहुजन की व्यथा होती है
अब ऐसे में
कैसे मैं बधाई दूं ..
पुरस्कृत कवि को
आप मुझे नक्सली कह दो
कह दो बेईमान , फ़र्जी
या देशद्रोही
मुझे फ़र्क नहीं पड़ता

Monday, June 10, 2019

दूसरी बार तानाशाह आया है

दूसरी बार तानाशाह आया है
कहता है पहले से ज्यादा लोगों ने उसे पसंद किया है , मत दिया है
जन्तर -मंतर , संसद मार्ग पर वीरानी है
लोगों ने उन्हें धोखा दिया है !
कवियों ने तो चुनाव से पहले ही समर्थन का आह्वान किया था
हालांकि हमने उनको कवि-लेखक कभी माना नहीं
किन्तु, सभी पुरस्कार -सम्मान वही ले गये
मेरी नन्ही प्रकृति ने
खेल-खेल में दो हवाई जहाज कहीं गुमा दी है
उसकी भाषा अभी साफ़ नहीं है
फिर भी वह इशारे से भी कभी बादलों को दोष नहीं देती है
इस बार गाय को माँ कह कर गौ संतान भी नहीं पुकार रहे
बोलता है ...अब राष्ट्र की बात है
गाय आकार में छोटी हो गई इस बार चुनाव से पहले
मजदूर नेता नया दल बना कर सत्ता बदलने का ख़्वाब पाल रहे हैं
मुफ़्तखोर वामी कैडरों ने बंगाल में अपनी औकात दिखा दी है
ख़बर पक्की मिली है
वे छाती से अब पद्दो फूल लगा कर 'जय श्रीराम' बोल रहे हैं
सुभाष चक्रबर्ती के नाती काली माई की मूर्ति बना रहे हैं
कालीपूजा की रात उनकी आत्मा की शांति के लिए
बांग्लादेश की अभिनेत्री की घर वापसी हो चुकी है
उसने हाथों में कमल थाम लिया है
पिछली बार जब कुछ लिखा था यूँ ही
वरिष्ठ ने कहा था - अपना देखो , क्या किये हो
उस दिन मैंने सोच लिया था ....
अब न सोचूंगा , न कहूँगा उनसे कुछ
जिन्होंने चुना है , और जो अब खामोश हैं
उनका हिसाब समय करेगा
मैं तो केवल इनके अपराधों का दस्तावेज़ बना कर जाऊँगा

Saturday, June 8, 2019

धरती की सीने की दरारें फिर भरने वाली हैं

चैत की तपती धूप में तनहा खड़े
वृक्ष को देखिये
उसकी टहनियों में जो नई हरी पतियां
उग आई हैं
वे हम सब हैं
ऐसा मुझे लगता है
हार कभी होती नहीं ,
जब तक हम पराजय को स्वीकार न कर लें
हम -आप अब भी युद्ध भूमि पर खड़े हैं
इसलिए नई पत्तियों में
मैं सबको देख रहा हूँ
सूचना मिली है -
मानसून का प्रवेश हो चुका है
धरती की सीने की दरारें फिर भरने वाली हैं
हमारे सीने की आग बूझते अभी वक्त लगेगा
हमें न्याय का इंतज़ार है

Thursday, May 30, 2019

देखिये, मंज़र-ए-आम

मज़हब के बाज़ार में
बिक गया अवाम

कुछ को है हैरानी
हंसते उधर तमाम

देखिये, मंज़र-ए-आम 
बाहर मयखाने के छलक रहे जाम 


Wednesday, May 29, 2019

यह भूल सुधारने का वक्त है

सब ख़ामोश हो गए अचानक
कुछ फुसफुसा रहे हैं
मेरी तरह
कुछ अपने बचाव में
संविधान की दुहाई दे रहे हैं 
और भूल गए संविधान बदल देने की बात करने वालों का चेहरा
यही तो वक्त है
पहचानने की
कि पार्टनर की पॉलिटिक्स क्या है
मेरे मुक्तिबोध !
आओ , एक -एक चेहरे की सूची बना लें अब हम
ताकि देर होने पर कोई मलाल न रहे
इस बीच कुछ ने सरकारी नौकरी पा ली है
कुछ पाने की जुगाड़ में है
कुछ ने तो लिखित रूप में सत्ता के पक्ष में समर्थन की घोषणा की है
और वे ज्यादा ईमानदार हैं उनसे
जो मेरे बगल में ख़ामोश बैठा है
अन्याय की इस घड़ी में
और वही सबसे ख़तरनाक और चालाक है
जबकि उसे अब तक हम
सामूहिक हक़ की लड़ाई के सिपाही के रूप में देख रहे थे
यह भूल सुधारने का वक्त है
वक्त है लड़ाई की तैयारी की
आओ अपने बीच छिपे मानवता के गद्दारों को पहचाने
तानाशाही सत्ता से लड़ने की नई ऊर्जा को
संचित करें
और लक्ष्य हासिल तक
शाहिद होने को तैयार करें ख़ुद को
ताकि आने वाली पीढ़ी के आगे हमें शर्मिंदा न होना पड़े
कि हमने उनके भविष्य के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी ।

Wednesday, April 17, 2019

उसके हाथों में खून के धब्बे नहीं बचे हैं

उसके हाथों में
खून के धब्बे नहीं बचे हैं
किन्तु जले हुए
इंसानी मांस की दुर्गन्ध आती है
तमाम अपराधों में नामज़द अपराधी 
उसकी मंडली में शामिल हैं
इतना ही नहीं
वह भेजता है अपने एक वज़ीर को
हत्यारों के स्वागत के लिए
मिष्ठान और माला के साथ
हत्या के बाद जश्न में शामिल शैतान
उसके मित्र हैं
कोई हैरानी नहीं है कि ये सभी
एक अपराधी के सामान्य गुण हैं
हैरानी इस बात पर होती है कि
एक जज मारा गया
और अदालत ने कुछ नहीं कहा
चिंता इस बात की है
लोग तो मरें
और मारने वाले को निर्दोष बताया गया
सबूतों के अभाव में
'वी दि पीपुल' हम नहीं रहें
वह संविधान बदलना चाहता है
और हम आपस में
एक-दूसरे को नीच साबित करने की मुहीम में लगे हुए हैं
आने वाले दिनों में अँधेरा और गहराएगा
तानाशाह अपनी जीत पर नहीं
हमारी मूर्खता पर जोर से ठहाका लगाएगा

Friday, April 12, 2019

अपराध करने की जरूरत नहीं

अपराधी बनने के लिए
अपराध करने की जरूरत नहीं
केवल सत्ता से
कोई सवाल कर लीजिये
मैंने तो इससे भी बहुत कम कुछ किया
तुमसे प्रेम किया
और अपराधी घोषित हो गया
अच्छा चलिए
आप न सवाल करिए
न ही प्रेम कीजिये
आप केवल अपनी जमीन
अपना अधिकार मांग के देखिये
आपको पता चल जायेगा
अपराधी कैसे बना दिए जाते हैं
लोकतंत्र में
चलो छोड़ो इन बातों को
आप खुद को मुसलमान बता कर
एक गाय खरीद लीजिये
अखबारों के मुख्य पेज पर
आपकी मौत की खबर छप जाएगी अगले दिन

Saturday, April 6, 2019

मैं पत्थर होना चाहता हूँ अब

कवियों ने चाँद को रोटी बना दिया
हम फ़रेब चबा कर जीते रहें
चाँद से कही भूख की बात
उसने मुस्कुराना छोड़ दिया
आकाश तवा नहीं है
आग पेट में लगी है
हम तन पर पानी डाल रहे हैं
मेरी भाषा बिगड़ गई है
सबको ख़बर लगी
किसी ने भूख पर चर्चा नहीं की
सुने कि इस देस में आठ बरस की मासूम लड़की ने
भात-भात चीखते हुए दम तोड़ दिया है
भारत भाग्य विधाता बना हुआ बहरूपिया
लगातर मुस्कुरा रहा है
मेरी चीख़ पर
क्योंकि मेरी चीख़ अब गूंजती नहीं आपके कानों में
तय कर लिया
अब नहीं चीखूंगा
नहीं कहूँगा भूख और भूखों की बात
सब ठीक है
हमने फ़तह कर ली है आसमान
राकेट उड़ा कर
विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था का नागरिक हूँ
कैसे बदनाम कर सकता हूँ
महान देश का नाम
हाँ, अब शर्मिंदा हूँ कि
मैंने भूख की आवाज़ उठाई
खाये-अघाये लोगों के समाज में
पत्थरों ने नहीं सुनी कभी नदी की पीड़ा की कहानी
मैं पत्थर होना चाहता हूँ अब

Thursday, April 4, 2019

खो गया स्मृतियों में

उदास होकर रोना चाहता था तुम्हारी याद में हो न सका खो गया स्मृतियों में दुर्गापुर स्टेशन में चाय पीने लगा ट्रेन की प्रतीक्षा में अस्सी घाट पर सेल्फी लेने में खो गया संकट मोचन मंदिर के बंदरों को हलवा खिलाते देखता रहा तुमको विश्वनाथ के मठ में ठगों को जमा देखा भांग का गोला खाए बिना नौकाओं को झूमते देखा गंगा की छाती पर मुक्ति भवन में जगह नहीं बची थी मेरे लिए जंगल बुक के मोगली को देखा शेर खान से लड़ते हुए खुले आकाश तले मुझे चूमते हुए रिक्शे वाले ने देखा तुमको अस्सी घाट की कुल्हड़ वाली चाय की गर्माहट मेरी सांसों से बहने लगी बिछड़ने से पहले तुम्हारा अंतिम आलिंगन जैसा अब बनारस उजड़ गया है विकास की आंधी में बाकी है मुझमें बनारस का खुला घाट और तुम्हारे स्पर्श का अहसास शांत है गंगा बेचैन हैं घाट उन्हें हमारी ग़ैर हाज़री खलती होगी पान चबाये तुम्हारे सुर्ख़ होंठ क्यों उदास है आज ? इस सवाल का जवाब नहीं है मेरे पास जबकि ख़बर मिली है तुम खुश हो अपनी दुनिया में !

यहाँ एक पुल गिरा था
दब कर मर गए कई लोग
हम ज़िन्दा हैं
यादों के सहारे


Monday, April 1, 2019

जीत मेरी नहीं हमारी होनी चाहिए

लड़ रहा हूँ
तुम्हारे
अधिकारों के
हक़ में
बधाई नहीं
साथ चाहिए
जीत मेरी नहीं
हमारी होनी चाहिए
बधाई
हासिल की होनी चाहिए
जबकि
हम
अभी मैदान-ए-जंग में हैं
साथ आओ न आओ
मेरी लड़ाई ज़ारी रहेगी
तुम्हारे सुरक्षित कल के लिए
मैं मज़ाक का पात्र बनने को
तैयार हूँ
किन्तु हार नहीं मानूंगा 

Saturday, March 16, 2019

अभी सिर्फ 'बनारस' उजड़ा है

बामियान की बुद्ध प्रतिमा
नेस्तनाबूद कर तालिबान ने
दफ़न कर दिया था एक प्राचीन सभ्यता को
किसी सभ्यता पर यह कोई पहला हमला नहीं था 
हजारों सभ्यताओं का क़त्ल हुआ आतंक के हाथों
उनकी कहानियां दर्ज़ तक नहीं हुई इतिहास की किसी किताब में
अब विकास की आंधी में लुप्त हो रही हैं प्राचीन सभ्यताएं
लाखों जन-जातियों को बहुत
पहले ही लुप्त कर दिया गया
खो गई हजारों बोली और भाषाएं
उजाड़ी गईं इंसानी बस्तियां
अब नगर की बारी है
नगर के मंदिर -मस्जिद -चर्च और गुरूद्वारे रहें होंगे ज़रूर
मगर उससे बड़ी बात
उजाड़े गये नगर के लोग कहाँ जायेंगे ?
जल, जंगल और जमीन पर तो पूंजी का शिकंजा है
देश -देश चीखने वालें
सभ्यताएं ढहा कर राष्ट्र निर्माण कर रहे हैं
शासक अब व्यापारी नहीं है
वह व्यापारियों का दलाल है
उसे नई मंडी सजाने का ठेका मिला है
अभी सिर्फ 'बनारस' उजड़ा है
आगे कई नये हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के स्नानागार
उजाड़े जायेंगे
नदी नहीं अब काल नदी बहेगी इंसानी बस्तियों से

यह बर्फ के पिघलने का वक्त है

सर्दी सिकुड़ रही है
और हमारी अभिव्यक्ति जमने लगी हैं
जैसे हमारी ज़ुबान पर कोई भारी वस्तु रख दी गई हों
कीचड़ से चिपक गई हों जैसे
आंखों की पलकें
बाज से लड़ती चिड़िया की कहानी
अब हम नहीं सुनाते अपने बच्चों को
विज्ञान के प्रवेश परीक्षा से पहले बच्चों को मंदिर ले जा रही हैं माएं
हमने मां को भी तो गाय बना दिया है
कंप्यूटर का छात्र शिवलिंग पर दूध उड़ेल आया है सोमवार सुबह
हिंदी साहित्य की एक शोधार्थी ने सोलह सोमवार का निर्जला उपवास के बाद
अब किसी संतोषी माता की खुशी के लिए
कुछ बच्चों को गुड़ चना खिला रही है
एक गाय प्लास्टिक चबाती हुई दिल्ली की भीड़ भरी सड़क के बीच खड़ी होकर रंभा रही है
हममें से किसी ने उसे नहीं बताया कि
अखलाक, जुनैद जैसे अनेक युवाओं की
हत्या कर दी गई है उसके नाम पर
हत्यारों ने खुद को गौ रक्षक बताया है
और हत्या को वध कहा है
इसी तरह गांधी की हत्या कर उसे वध कहा था इनके पूर्वजों ने
और अब वे गांधी के पुतले को भी गोली मार रहे हैं
खून से रंगे हाथों की सफाई के लिए
पैर भी धोए गए ताकि
तस्वीर में कैद हो जाएं उसकी निर्मलता
डिजिटल युग में तस्वीर ही तो बोलती है
विश्वविद्यालयों में छात्र लाठी खा रहे हैं
मैं राजा के सांड की तलाश में सड़क पर भटक रहा हूं
इस बीच हरामी ने बनारस उजाड़ दिया ।
यह बर्फ के पिघलने का वक्त है ।

Sunday, March 3, 2019

काले रंग का कौवा हो या कोयल इस ख़तरनाक समय में उनका बचना मुश्किल है

कौवा बेघर था
अंधकार रात के हमले में मारा गया
उसे बेकसूर कहना उचित नहीं
वह दुश्मन देश का निवासी पक्षी था
ऊपर से काला रंग 
आजकल तो अपने देश में भी काले रंग का खौफ़ फैला हुआ है
इतना खौफ़ कि अब
मर्द, औरत और यहाँ तक की पांच साल के बच्चे की भी
चड्डी उतार कर तलाशी ली जाती है
ऐसे में दुश्मन यदि अपने काले पक्षी को हमले वक्त बेघर -बेसहारा छोड़ेगा
हजार किलो बम के आगे तो उसका यही नतीजा होगा
काले रंग का कौवा हो या कोयल इस ख़तरनाक समय में उनका बचना मुश्किल है
देस के लोगों को भी तो काले रंग से निज़ात पाने के लिए
मल्टीनेशनल कम्पनियों ने मर्द और औरत के लिए अलग -अलग क्रीम बाज़ार में लंच कर दिया था दशकों पहले
कौवा पहले भी मरे हैं
आगे भी मरते रहेंगे
पर गाँव का किसान जो गेहुआ या सांवले रंग का था
मर गया कर्ज और भुखमरी से
लाखों बच्चें जिनमें अभी बचपन का रंग भी ठीक से उभरा नहीं था
मर गये कुपोषण से
कुछ की ऑक्सीजन सप्लाई काट दी गई
और वे 'अगस्त मृत्यु काल' में विलीन हो गये
मैं भी काला हूँ
मेरे बहुत दोस्त भी काले हैं
हम सवाल करते हैं
हमारी जुबान काली हैं
हमारा क्या होगा ?

Thursday, January 10, 2019

सबको सत्ता चाहिए

और इस तरह उसने संविधान में बदलाव कर दिया
इस हरकत में कथित विपक्ष में बैठे सभी ने उसका साथ दिया
सबको सत्ता चाहिए ,
संविधान की परवाह किसे थी , किसे है ?
सत्ता के लिए ही तो 
मंदिर-मस्जिद गोत्र -जिनेऊ देखने -दीखाने का सिलसिला शुरू हुआ है
प्रजा का क्या करें ?
वह तो उलझी हुई है बेमतलब के मुद्दों में,
बुद्धिजीवी लोग कहीं मेले में हांड रहे हैं ....
किसी मंच से कवि -राग गा रहा है
जन्तर-मंतर से संसद मार्ग तक कुछ चेहरे
जुलूसों के पीछे -पीछे चल रहे हैं
न्यायालय ने अपना अधिकार क्षेत्र निर्धारित कर लिया है
नगर की दीवारों पर लगे पोस्टरों पर
एक आदमी मुस्कुराते चेहरे के साथ
तमाशा देख रहा है
गौशाला से गायें आधी रात में रंभाती या
रोती हुई दिखाई देती हैं
शासन ने अपने सांड़ों को सड़क पर उतार दिया है
राजा के सिपाही मुस्तैदी से लाठी को तेल पिला रहे हैं

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...