Friday, April 27, 2012

मेरी तन्हाई में साझेदार है

रात की तन्हाई
क्या बताऊँ तुम्हे
मेरी तन्हाई में
साझेदार है

उधर रात जागती  है मेरे लिए
इधर मैं ,
कहीं रात भी
बेवफा न समझ ले मुझे
उनकी तरह ..........

Tuesday, April 24, 2012

ऐसा नहीं कि


ऐसा नहीं कि

मैं, तुमसे मिलना

नही चाहता अकेले में ,

पर क्या करूँ

हर तरफ भीड़ है बेशुमार




गली का वो कोना

आज ही बिका है

तालाब के किनारे

खड़े हो गए सीमेंट के जंगल

अब यहाँ पंछियों का जोड़ा भी

नही आता कभी




मैं नही डरता

लोगों की कानाफुसी से

बस सहम उठता हूँ कभी –कभी

खाप  पंचायत से

सरकारी जासूसों से

कहीं भर न दे हमें

 सलाखों के पीछे

“राजद्रोह “ के आरोप में ...............

Monday, April 23, 2012

यदि मिला कभी तुमसे ...

यदि मिला कभी तुमसे ....
सुनाऊंगा अपनी कहानी फुर्सत से
....अब तक जो बुना था
ओढ़ कर सोने दो मुझे

Saturday, April 21, 2012

नही करना चाहता खुद पर संदेह

हम दोनों के 
बीच की दूरी
यूँ ही बनी रहे 
अपनी सफाई देकर 
नही करना चाहता खुद पर संदेह
न ही करना चाहता हूँ 
तुम्हे शर्मिंदा ....

Monday, April 16, 2012

विश्राम के पश्चात



एक दीर्घ विश्राम
के पश्चात आज
कागज –कलम
एक साथ है
बहुत कुछ
जमा हो गया है ,मन में
कुछ सुनहरे
और कुछ गाद की तरह

अब तीब्र बेचैनी है
बाहर निकलने की
कविता का रूप लेना चाहती है,
स्मृति और भावनाओं का ढेर
जो पकते रहे मेरे भीतर
विश्राम काल  के दौरान

अभी पतझड़ का मौसम है
नग्न है सभी पेड़
नमीहीन हवा बहती है
धुल उड़ाती हुई

कुछ पक्षी जो
बचे हुए हैं
अपने संघर्ष के दम पर
कहीं छिप गए हैं
नए पत्तों के उगने के साथ
लौट आयेंगे
भरोसा है मुझे ..............

Saturday, April 7, 2012

मुझे माफ़ कर देना सम्राट अशोक



मैंने नहीं पढ़े
तुम्हारे खुदवाए शिलालेख
पर पढा है तुम्हारे बारे में
इतिहास पुस्तकों में
यहाँ तुम्हे लिखा गया है ‘महान’
तुम्हारे बर्बर कारनामों के बाद भी

सत्ता के लिए
तुमने किये
अपने ही भाइयों की हत्या
रक्त से नहलाया
बेकसूर कलिंग को
फिर भी तुम महान हो
इतिहास की किताबों में  

क्या शिलालेख से
माफ़ हो जाते हैं खून ?
अमेरिका का बुश
गुजरात का राजा 
कुछ ऐसा ही सोचते हैं

जघन्य नरमेध के बाद
क्या तुम्हारी तरह
इनमे भी 'उपज' रही है
"सद.........भावना ...

तो क्या आने वाली पीढ़ी
इन्हें ही पाएंगे महान
इतिहास पुस्तकों में ? 

Sunday, April 1, 2012

कर सकता हूं अनुवाद


मैं कर सकता हूं
 अनुवाद
पीड़ा का , प्रेम का 
आंसुओं से 
अनुवाद कर सकता हूं 
षड्यंत्र और चालाकी का 
चुप्पी और मुस्कान से 
मण्डली, चोला और  बोली देखकर  
कर सकता हूं अनुवाद 
तुम्हारी अपेक्षाओं का ...

मैं मूक जरूर हूं 
पर अचेत नही ......


इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...