Saturday, March 16, 2019

अभी सिर्फ 'बनारस' उजड़ा है

बामियान की बुद्ध प्रतिमा
नेस्तनाबूद कर तालिबान ने
दफ़न कर दिया था एक प्राचीन सभ्यता को
किसी सभ्यता पर यह कोई पहला हमला नहीं था 
हजारों सभ्यताओं का क़त्ल हुआ आतंक के हाथों
उनकी कहानियां दर्ज़ तक नहीं हुई इतिहास की किसी किताब में
अब विकास की आंधी में लुप्त हो रही हैं प्राचीन सभ्यताएं
लाखों जन-जातियों को बहुत
पहले ही लुप्त कर दिया गया
खो गई हजारों बोली और भाषाएं
उजाड़ी गईं इंसानी बस्तियां
अब नगर की बारी है
नगर के मंदिर -मस्जिद -चर्च और गुरूद्वारे रहें होंगे ज़रूर
मगर उससे बड़ी बात
उजाड़े गये नगर के लोग कहाँ जायेंगे ?
जल, जंगल और जमीन पर तो पूंजी का शिकंजा है
देश -देश चीखने वालें
सभ्यताएं ढहा कर राष्ट्र निर्माण कर रहे हैं
शासक अब व्यापारी नहीं है
वह व्यापारियों का दलाल है
उसे नई मंडी सजाने का ठेका मिला है
अभी सिर्फ 'बनारस' उजड़ा है
आगे कई नये हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के स्नानागार
उजाड़े जायेंगे
नदी नहीं अब काल नदी बहेगी इंसानी बस्तियों से

यह बर्फ के पिघलने का वक्त है

सर्दी सिकुड़ रही है
और हमारी अभिव्यक्ति जमने लगी हैं
जैसे हमारी ज़ुबान पर कोई भारी वस्तु रख दी गई हों
कीचड़ से चिपक गई हों जैसे
आंखों की पलकें
बाज से लड़ती चिड़िया की कहानी
अब हम नहीं सुनाते अपने बच्चों को
विज्ञान के प्रवेश परीक्षा से पहले बच्चों को मंदिर ले जा रही हैं माएं
हमने मां को भी तो गाय बना दिया है
कंप्यूटर का छात्र शिवलिंग पर दूध उड़ेल आया है सोमवार सुबह
हिंदी साहित्य की एक शोधार्थी ने सोलह सोमवार का निर्जला उपवास के बाद
अब किसी संतोषी माता की खुशी के लिए
कुछ बच्चों को गुड़ चना खिला रही है
एक गाय प्लास्टिक चबाती हुई दिल्ली की भीड़ भरी सड़क के बीच खड़ी होकर रंभा रही है
हममें से किसी ने उसे नहीं बताया कि
अखलाक, जुनैद जैसे अनेक युवाओं की
हत्या कर दी गई है उसके नाम पर
हत्यारों ने खुद को गौ रक्षक बताया है
और हत्या को वध कहा है
इसी तरह गांधी की हत्या कर उसे वध कहा था इनके पूर्वजों ने
और अब वे गांधी के पुतले को भी गोली मार रहे हैं
खून से रंगे हाथों की सफाई के लिए
पैर भी धोए गए ताकि
तस्वीर में कैद हो जाएं उसकी निर्मलता
डिजिटल युग में तस्वीर ही तो बोलती है
विश्वविद्यालयों में छात्र लाठी खा रहे हैं
मैं राजा के सांड की तलाश में सड़क पर भटक रहा हूं
इस बीच हरामी ने बनारस उजाड़ दिया ।
यह बर्फ के पिघलने का वक्त है ।

Sunday, March 3, 2019

काले रंग का कौवा हो या कोयल इस ख़तरनाक समय में उनका बचना मुश्किल है

कौवा बेघर था
अंधकार रात के हमले में मारा गया
उसे बेकसूर कहना उचित नहीं
वह दुश्मन देश का निवासी पक्षी था
ऊपर से काला रंग 
आजकल तो अपने देश में भी काले रंग का खौफ़ फैला हुआ है
इतना खौफ़ कि अब
मर्द, औरत और यहाँ तक की पांच साल के बच्चे की भी
चड्डी उतार कर तलाशी ली जाती है
ऐसे में दुश्मन यदि अपने काले पक्षी को हमले वक्त बेघर -बेसहारा छोड़ेगा
हजार किलो बम के आगे तो उसका यही नतीजा होगा
काले रंग का कौवा हो या कोयल इस ख़तरनाक समय में उनका बचना मुश्किल है
देस के लोगों को भी तो काले रंग से निज़ात पाने के लिए
मल्टीनेशनल कम्पनियों ने मर्द और औरत के लिए अलग -अलग क्रीम बाज़ार में लंच कर दिया था दशकों पहले
कौवा पहले भी मरे हैं
आगे भी मरते रहेंगे
पर गाँव का किसान जो गेहुआ या सांवले रंग का था
मर गया कर्ज और भुखमरी से
लाखों बच्चें जिनमें अभी बचपन का रंग भी ठीक से उभरा नहीं था
मर गये कुपोषण से
कुछ की ऑक्सीजन सप्लाई काट दी गई
और वे 'अगस्त मृत्यु काल' में विलीन हो गये
मैं भी काला हूँ
मेरे बहुत दोस्त भी काले हैं
हम सवाल करते हैं
हमारी जुबान काली हैं
हमारा क्या होगा ?

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...