Sunday, September 27, 2015

संसद भवन की सीड़ियों पर माथा टेक कर बन सकते हैं आप

तमाम अपराधों के बाद
वे गाएंगे
जन-गण-मन
वंदेमातरम्
और बन कहलाएंगे राष्ट्रवादी

जो कोई बोलेगा
गरीब, आदिवासी, अल्पसंख्यक
और दलितों पर हुए अत्याचारों के बारे में
कहलाएंगे  गद्दार
संसद भवन की सीड़ियों पर माथा टेक कर
बन सकते हैं आप
देशभक्त

विदर्भ, कालाहांडी या कोई और हिस्सा देश का
जहाँ रोज मरने को विवश हैं लोग
उनकी बात न करना
बहुत महंगा पड़ेगा तुम्हें
ये देश  हमारा नहीं
राष्ट्रवादियों का  है




Saturday, September 26, 2015

पानी की गहराई का अंदाजा नहीं था उन्हें

पानी की गहराई का अंदाजा नहीं था उन्हें
वे धकेलना जानते थे
डूबता हुआ व्यक्ति लड़ता है
सांसों से जंग
निपूर्ण तैराक ही पा लेता है फ़तेह
बाकी सब डूब ही जाते हैं
गोताखोर कूद जाते हैं पानी में
पूरी तैयारी के साथ
तल से उठा लाते हैं लाश
सांसों से उसकी संघर्ष की कहानी कोई नहीं जान पाता
धकेलने वाला शायद ही शर्मसार होता हो
देखकर उसे
वह तसल्ली देता है मन को
और सोचता है
उसने तो दिल्लगी की थी
यह तो मरने वाले की गलती थी
जो तैरना नहीं जानता था ||

Thursday, September 24, 2015

पता नहीं कितना बचा हूँ अब

मैं मिट रहा हूँ 
पल-पल
पता नहीं कितना बचा हूँ अब
कल रात ही मिटा दिया 
मैंने उन रातों को 
जो हमने गुजारी साथ-साथ
चाँद गवाह है
कि मैंने नहीं किया कोई फ़रेब तुम्हारे साथ
बस आ गया था अमावस हमारे बीच
जिसे तुमने मेरा धोखा समझा ||



Wednesday, September 23, 2015

तुम्हें अलविदा कहते समय

तुम्हें अलविदा कहते समय
छोड़कर जाने को बहुत कुछ होगा मेरे पास
मैं सिर्फ ले जाऊंगा
मेरे सबसे कठिन समय में
साथ खड़े होके
मेरे पक्ष में कहे हुए
तुम्हारे शब्दों को ....
अपने साथ

चित्र : गूगल से साभार

Monday, September 7, 2015

हर सच को अपनी आलोचना मानती हैं सत्ता

हम सच बोलेंगे
और क़त्ल कर दिए जाएंगे
सत्ता डरती है सच से
हर सच को अपनी आलोचना मानती हैं सत्ता
हम भूले नहीं हैं
सुकरात को
उसके ज़हर के प्याले में
मिला दिया गया था हमारे हिस्से का ज़हर भी
सत्ता नहीं जानती
ज़हर से व्यक्ति मरता है
सच नहीं ||

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...