Wednesday, February 29, 2012

पूछे जायेंगे सवाल अतीत से



तुम्हारे अतीत से 
पूछे जायेंगे सवाल 
आज जैसे तुम पूछते हो 

तुम्हारे माथे पर 
उभर आयेंगी 
लज्जा और घबराहट की लकीरें 

जोश में अक्सर 
होश खो जाता है 
तभी लिख जाता है 
एक काला  इतिहास 

वक्त के साथ
 शिथिल हो जाता है
 खून का उबाल  
तब अहसास होता है
  भूल का 
पर बीता हुआ समय
 लौट कर नही आता 
और मुमकिन नही अब 
अशोक महान बनना 
सिर्फ खुद पर 
शर्मिंदा होना पड़ता है ............


लौटा पाओगे मुझे ..............


खो जाना चाहता हूं 
वसंत पवन में 
धूप में 
ज्योत्स्ना में 
पंछियों के मधुर सूर में .........
लौटा पाओगे  मुझे 
पृथ्वी का खोया हुआ यौवन ?

Monday, February 27, 2012

ख़ामोशी के बचाव में ............

  
उन सभी 
कमजोर लोगों ने
जिम्मेदार ठहराया वक्त को 
अपनी ख़ामोशी के लिए 

उन सभी ने उचित समझा 
मौन रहना 
अपने वक्त के 
हलचलों के विरुद्ध 
मानकर 
कि बड़ा ही बलवान होता है वक्त 

अपनी चुप्पी के पक्ष में 
तर्क दिए अनेक 
और बोलने वालों को 
मुर्ख कहकर संबोधित किया 

Friday, February 24, 2012

यह दौर गुटबाजी का है

यह दौर 
गुटबाजी का है 
निर्गुट रहना 
कठिन हो गया है 

दुनिया भर में 
बन रही हैं 
सरकारें गटबंधन की
अपना भविष्य 
उनके समर्थन 
पर टिका कर
गणमान्य लोग भी
नही बच पाए
इस आंधी से

जो निर्गुट थे
मारे गए
या कहिये
लुप्त हो गए
आज निर्गुट रहना
सबसे बड़ा गुनाह है .....................

Tuesday, February 21, 2012

कहीं नही मेरा जहान



 

नोटों पर 
बापू  मुस्काए 
हरिजन क्यों 
आंसू बहाए 

खेसारी पर 
प्रतिबन्ध लगाये 
बतला दो 
हम क्या खाए 

खेतों पर 
सड़क उग आये 
बोलो हम 
क्या उगाये 
कुएं से जब 
निकले तेल 
क्या धोये 
क्या नहाये ?

मेरा देश है 
बड़ा महान 
कहीं नही 
             मेरा जहान...........



Thursday, February 16, 2012

हुसेन जीवित है ................



हुसेन जीवित है
ठीक पहले की तरह
हमारे दिलों में

अब बस
हिंदुस्तान की गलियों में
 नंगे पांव
उनका शरीर
 नही चलता

रोका गया
हुसेन को
चलने से
बतियाने से
तुलिका उठाने से
पर बाज़ीगर
कब मानते हैं ?

यह जो कुछ मुट्ठी भर
भारत भाग्य विधाता हैं
रास न आई उन्हें
मकबूल की परछाई
निकाल दिया
वतन से उन्हें
दे कर लोकतंत्र की दुहाई //

Sunday, February 12, 2012

आइ.एम .सारी

भूला नही था 
सन सैंतालिस अभी 
आ गया पचहतर 
आपात बनकर
कुछ -कुछ 
अभी उबरा ही था 
उपचार अभी चल रहा था 
आगया 
सन चौरासी 

कुछ यादें 
हुई धुंधली सी 
उठा था 
संभलने को 
आ गया वर्ष 
दो हज़ार दो 

थका हुआ डाक्टर 
क्या करता 
नम आँखों से 
कह दिया -------
आइ.एम .सारी 

( सन 47 देश विभाजन ,सन 75 आपातकाल , सन 84 सिख विरोधी दंगे , और 2002 गोधरा कांड )

Thursday, February 9, 2012

देवता नाराज़ थे -


खाली हाथ 
वह लौट आया 
मंदिर के दहलीज से 

नही ले जा सका  
धूप -बत्ती ,नारियल 
तो ----
देवता नाराज़ थे 

झोपड़ी में 
बिलकते रहे 
बच्चे भूख से 
भगवान 
एक भ्रम है 
मान लिया उसने

Sunday, February 5, 2012

मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें ...................


 कुछ साये 
ऐसे भी होते हैं 
जिनका कोई 
चेहरा नही होता 
नाम नही होता 
केवल
 भयानक होते हैं 
नफ़रत की बू  आती है 
भय का आभास होता है 

कहीं भी हो सकते हैं 
अयोध्या में 
गोधरा में 
इराक या अफगानिस्तान में 
किसी भी वक्त 

इंसानी खून से 
रंगे हुए हाथ 
इनकी पहचान है 

कोई मज़हब नही इनका 
ये साये 
खुद के भगवान्  होते हैं 

खुद नही उगते ये 
मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें ...................

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...