Tuesday, February 20, 2018

मैं मजाक का पात्र हूँ

जानता हूँ कि
मैं मजाक का पात्र बन चुका हूँ
इस समय सच कहने वाला हर शख्स 
मज़ाक का पात्र है आपके लिए 
हर भावुक व्यक्ति जो
मेरी तरह बिना किसी चालाकी के कह देता है
अपनी बात
वह मूर्ख है
आपकी नज़रों में
मैं जानता हूँ
मुझे उस वक्त अहसास हो गया था
अपनी नादानी का जब
मैंने तुमसे कह दी थी दिल की बात
और तुम पर कर लिया था भरोसा
लोग हँसते हैं मुझ पर
सोचते हैं पागल है
शायद इस वक्त होश में नहीं है
सही कहते -सोचते हैं लोग
तुम्हें सोचते वक्त कब मैं
होश में रहता हूँ भला ?
पर मुझे याद है कि
मेरा भरोसा टूटा तो है
मैं बदले के लिए दुश्मनों का सहारा नहीं लेता
क्योंकि मैंने दोस्त बनाएं हैं
दुश्मन नहीं
पर अब दोस्तों में भी किसी दोस्त को खोजना
बहुत कठिन है
प्रेम मरता नहीं कभी
बस बदनाम होता है जीवन काल में
और मेरा जीवन कुछ लम्बा हो गया है शायद
तुम्हारे लिए !

Friday, February 16, 2018

खोजो


खोजो कि कुछ खो गया है
पर खोजो यह मान कर कि सब कुछ खो गया है
खोजो कि खो गई हैं
हमारी संवेदनाएं
बच्चों का बचपन खो गया है
खोजो, कविताओं से गायब हुए प्रेम को
और सभ्यता की भाषा खो गई है
खोजो कि देश का लोकतंत्र कहाँ खो गया है
सत्ता का विवेक खो गया है
नागरिक का अधिकार खो गया है
मानचित्र तो मौजूद है
कहीं मेरा देश खो गया है
उसे खोजो धरती की आखिरी छोर तक
खोजो कि,
किसान का खेत खो गया है
पेड़ की चिड़िया खो गई है
खोजो इस भीड़ में कहीं
मेरी तनहाई 
खो गई है
खोजो मुझे कि
मैं खो गया हूँ

Tuesday, February 6, 2018

सूरदास खुश हैं ........



आज फिर हाथ लगी पुरानी डायरी , इसमें अधूरी पड़ी एक कविता कुछ सुधार के साथ .........

प्रेम करता हूँ कहना 
आसान हो सकता है 
पर उस प्रेम को को महसूस करे कोई 
सबसे मुश्किल यही है 
दरअसल प्रेम लिखना और प्रेम करना दो अलग-अलग क्रियाएं हैं 
किन्तु दोनों के लिए ही प्रेम का अहसास बेहद जरुरी है
जरा सोचिए जब आप 'प्रेम' शब्द को लिखते हैं 
उस वक्त आपके मन में कैसा भाव उठता है ? 
तब कुछ मीठा सा या कुछ खालीपन भी उभर सकता है मन में 
और उस अहसास को 
हम अलग -अलग शब्दों से व्यक्त करते हैं शायद 
अपने उस प्रेम को हम 
अक्सर मुकम्मल शब्द नहीं दे पाते 
जो काम हम शब्दों से नहीं कर पाते 
अक्सर वह बात व्यक्त हो जाती है आँखों से 
स्पर्श से महसूस कर लेता है कोई 
उस प्रेम को
आजकल हमारी आँखें सूख रही हैं 
हाथ खुरदरे हो चुके हैं 
इसलिए लगातर असमर्थ हो रहे हैं हम 
उस प्रेम को व्यक्त करने में 
आँखों से, 
स्पर्श से !
हमारी भाषा कड़वी हो चुकी है |
हम बाजार में घूम रहे हैं नये नये गैजेट की तलाश में 
जिसके सहारे 
हम क्षण भर में लिख भेज देना चाहते हैं अपना प्रेम 
तभी पता चलता है कि 
किसी गाँव में 
खाप ने मौत की सज़ा सुनाई है एक प्रेमी को 
किसी मौलाना ने जारी किया है कोई फ़तवा 
और किसी माँ-बाप ने मार दिया अपनी संतान को 
प्रेम के अपराध में
बगल में कहीं एक 
राधा-कृष्ण के मंदिर के बाहर मीराबाई 
उदास आँखें लिए 
बैठी हैं 
सूरदास खुश है कि 
वह नेत्रहीन हैं |

रचनाकाल : 22 मार्च , 2014 

Friday, February 2, 2018

तो हैरानी के सिवा बचता क्या है ?

थ्री पीस सूट त्याग कर
घुटनों तक धोती में आकर ही
मोहनदास
महात्मा बने
अब कोई
उनके चरखे के साथ तस्वीर खिंचवाकर
शांतिदूत बनने की तमन्ना रख लें
तो कोई क्या करें !
राजकुमार सिद्धार्थ
लुम्बिनी का राज महल छोड़कर
जंगल -जंगल ज्ञान की तलाश में भटककर ही तो
बने थे गौतम बुद्ध |
अब कोई लाखों का सूट पहिनकर
खुद को फकीर कहें
तो कोई क्या करें ?
हिंसा जिसके शब्दों में व्याप्त हों
वो करें शांति और अमन की बात
तो हैरानी के सिवा बचता क्या है ?
सुकरात के ज़हर के प्याले के बारे में
जिसे कोई ज्ञान नहीं
वह करें त्याग की बातें
तो इसे आधुनिक भाषा में
कामेडी ही कहा जायेगा
अब उसकी हरकतों पर हैरानी नहीं होती
बस हंसी छूट जाती है
उसके तालाबों में
कितनी मछलियाँ जीवित बची होंगी
गोधरा को याद करते हुए
बताइएगा मुझे |

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...