सपनों का क्या है
Tuesday, August 29, 2023
इक बूंद इंसानियत
Saturday, July 2, 2022
बच्चों ने कश्ती में सूखे की पीड़ा लिखी थी
बरसात में कभी देखिये
नदी को नहाते हुए
उसकी ख़ुशी और उमंग को
महसूस कीजिये कभी
विस्तार लेती नदी
जब गाती है
सागर से मिलन का गीत
दोनों पाटों को
बात करते सुनिए
हर नदी की किस्मत में
मिलन नहीं है
फिर भी बारिश में नहाती कोई नदी
जब खुश होती है
पहाड़ खोल देता है अपनी बाहें
झूमता है जंगल
खेत खोल देता द्वार
और कहता -
ओ , नदी ...
थोड़ा संभल कर
मुझे सर्दी लग जाएगी !
खेत,
अपने उदास किसान का
चेहरा सोच कर बुबुदाता है !
कहीं दूर
उस नदी किनारे पर बसा गाँव से निकल कर
कुछ बच्चों ने
कागज की कश्ती बनाई थी
वे उसे
नदी में बहा देना चाहते थे
उस कश्ती में
बच्चों ने
अपनी ख़ुशी भर दी
और बताया
कि, पिछले साल
उनके गाँव के किसान ने
सूखे के कारण
अपनी जान दे दी थी
पानी के आभाव में मरे थे कई मवेशी
बच्चों ने कश्ती में
सूखे की पीड़ा लिखी थी
अब उस गांव में सैलाब है!
Friday, June 17, 2022
मुझे आकाश की भाषा नहीं आती ..
नदी जब मौन हो
Friday, January 28, 2022
तुमसे दूरी जरुरी थी
Tuesday, January 25, 2022
शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ
बहुत छोटी-छोटी बातों पर
Tuesday, September 28, 2021
इन्सान नमक हराम होता है!
नमक तो नमक ही है
Tuesday, August 10, 2021
'भाग्य-विधाता' तस्वीर में मुस्कुरा रहे हैं
बहुत अजीब सी ख़ामोशी है
इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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महामारी ने क्या-क्या संक्रमित किया पता नहीं, पर, जो कुछ जीवित है सब संक्रमित हुए होंगे एक दोस्त ने पूछा - ठीक हो तुम ? मेरा जवाब था - अब तक ...
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अपराधी बनने के लिए अपराध करने की जरूरत नहीं केवल सत्ता से कोई सवाल कर लीजिये मैंने तो इससे भी बहुत कम कुछ किया तुमसे प्रेम किया और अपरा...