Thursday, January 19, 2012

राख हुए सपने



'गुलाबी' के 
सपने तो बहुत थे 
उन्हें तोड़ने वाले 
कहाँ कम थे ?

रंगीन चूड़ियों 
का  सपना 
सहृदय बालम
का सपना 

 सबको अपना
 बनाने का सपना  

जलाई  जाएगी 
उसे केरोसिन डालकर 
नही था 
ये सपना गुलाबी का 
पर ........................
राख हुए सब सपने 
गुलाबी के साथ 


 

Friday, January 13, 2012

गावं से अभी -अभी लौटा हूं शहर में


गावं से
अभी -अभी
लौटा हूं शहर में

याद आ रही है
गावं की शामें
सियार की हुक्का हू
टर्र -टर्र करते मेंढक
सुलटी*के नवजात पिल्ले

कुहासा में भीगी हुई सुबह
घाट की युवतियां
सब्जी का मोठ उठाया किसान
धान और पुआल
आँगन में मुर्गिओं की हलचल

डाब का पानी
खजूर का गुड़
अमरुद का पेड़
मासी की हाथ की गरम रोटियां
माछ-भात

पान चबाते दांत
और ...........
नन्ही पिटकुली* की
चुलबुली बांतें
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*१ हमारी कुतिया
*२ छोटे मामा की ५ वर्ष की बिटिया

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...