Tuesday, June 27, 2017

हत्या के लिए कोई नया बहाना हर बार

दरअसल गाँधी की हत्या के साथ ही
उन्होंने बता दिया था
जब -जब उनका मन होगा
और जो कोई उन्हें पसंद नहीं होगा
उसी तरह सड़क पर उनकी निर्मम् हत्या कर दी जाएगी 
वे तन पर चोट देकर हत्या तो करेंगे ही
किन्तु उससे पहले वे कई बार चोट करेंगे हमारे मन पर
हमारी सोच पर
हमारी सोच से ही नफ़रत है उन्हें
जबकि ये हत्यारे ही नफ़रत के सबसे बड़े व्यापारी हैं
और उन्हें यह भली-भांति पता है कि
वे लाख कोशिशों के बाद भी मार नहीं सकते हैं हमारी सोच को
इसलिए अंत में वे हमें तन से ही मिटा देना चाहते हैं
भला भोजन के आधार पर किसी की हत्या कर दी जाएगी
ऐसा किसने सोचा था कभी
पूरी धरती पर ऐसा कहाँ -कहाँ होता है ?
यहाँ के अलावा कहीं नहीं
भोजन ही जीवन का आधार है
और अब उसी भोजन के आधार पर वे छीन रहे हैं जीवन
किन्तु यह सत्य नहीं है
हत्या के लिए इस भोजन को बस बहाना बनाया गया
दरअसल उनकी चिंता हमारी सोच से है
और किसी पशु की रक्षा के बहाने जो लोग
मार रहे हैं इंसानों को
उनके लिए क्या कहा जा सकता है भला !
पशु बोल नहीं पाते इन्सान की भाषा
पर प्रेम और नफ़रत के फ़र्क को महसूस कर सकते हैं
किन्तु उन्हें नहीं पता कि उनके नाम पर भी हत्या हो सकती है
गाँधी मांस नहीं खाते थे
शाकाहारी वैष्णव थे
उनकी हत्या हुई थी न
तो आज भोजन के आधार पर जो इंसानों को मार रहे हैं
दरअसल हत्या ही उनका पेशा है
खोज लाते हैं समय -समय पर
हत्या के लिए कोई नया बहाना हर बार

Tuesday, June 13, 2017

गवाही कौन दें

हत्या
हर बार
तलवार या बंदूक से नहीं होती
हथियारों से जिस्म का खून होता है
भावनाओं का क़त्ल फ़रेब से किया जाता है 
और पशु फ़रेबी नहीं होता
जानता है यह हक़ीकत इन्सान
फिर भी नहीं शर्माता
शर्म के लिए भी विवेक चाहिए |
धरती ,
बोलती नहीं दर्द की कथा
आकाश रहता है ख़ामोश
जिस पेड़ को हमने छुआ था
याद है उसे स्पर्श का अहसास
पर, अब
हम नहीं हैं एक साथ
गवाही कौन दें
कि बेवफ़ा कौन है ?

Monday, June 12, 2017

तुम्हारे पक्ष में ........


हाँ यही गुनाह है
कि मैं खड़ा हूँ तुम्हारे पक्ष में
यह गुनाह राजद्रोह से कम तो नही 
यह उचित नही
कि कोई खड़ा हो
उन हाथों के साथ जिनकी पकड़ में
कुदाल ,संभल , हथौड़ी ,छेनी हो
खुली आँखों से गिन सकते जिनकी हड्डियां हम
जो तर है पसीने से
पर नही तैयार झुकने को
वे जो करते हैं
क्रांति और विद्रोह की बात
उनके पक्ष में खड़ा होना
सबसे बड़ा जुर्म है ....
और मैंने पूरी चेतना में
किया है यह जुर्म बार -बार ..

रचनाकाल :12 जून , 2013 

Thursday, June 8, 2017

राजा निपुण शिकारी है

राजा संविधान कभी नहीं पढ़ता
वैसे राजा संविधान लिखता भी नहीं
इसलिए वह संविधान की परवाह नहीं करता
राजा का आदेश ही
राजा का संविधान है
जिसे प्रजा पर हर हाल में थोप दिया जाता है
क्यों कि राजा का मानना है कि
उसकी भलाई में ही
प्रजा की भलाई है
राजा आखिर सिर्फ राजा नहीं होता
इतिहास कहता है राजा धरती पर देवता का प्रतिनिधि है
और ये इतिहास किसने कब लिखा
किसी को नहीं पता
किसी देवता ने किसी मनु को राजा बना दिया था
ऐसी अफ़वाह खूब फैलायी गयी यहाँ
वर्षों पहले क्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया था
राजाओं को प्रिय है आक्रमण और हत्याओं की कहानी
राजाओं का प्रिय शौक है शिकार खेलना
प्राचीन राजा जंगल में शिकार खेलते थे
आधुनिक राजा के साम्राज्य में जंगल नहीं बचे हैं
इसलिए राजा अब शहरों, नगरों, कस्बों और गांवों में घुस कर शिकार खेलता है
वह शहर,
नगर,
गाँव को जंगल बना देना चाहता है |
राजा निपुण शिकारी है
और प्रजा आधुनिक जंगल के निवासी !

Monday, June 5, 2017

प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है

इस दौर में
कवियों से अधिक हमले
प्रेमियों पर हुए हैं
तभी तो ,
कवियों से अधिक 
प्रेमी शहीद हुए हैं
सत्ता डरती है
प्रेमियों से
लिखी गयी कविता अब मोड़ कर रख दी जाती है
कवि पुरस्कार लेकर खुश हो जाता है
तारीफ़ कवि की सबसे बड़ी कमजोरी है
जबकि प्रेम ऐसा कुछ नहीं चाहता
प्रेमी विद्रोह करता है
सबसे पहले
वह अपनों का विरोध करता है
जो प्रेम के विरोध में होते हैं
इसी तरह परिवार से समाज तक
और समाज से
सत्ता तक पहुँचता है उसका विरोध
सत्ता, जो एंटी रोमियो दल बनाती है
इसलिए ,
प्रेम क्रांति का पहला पड़ाव है
और मैं इस क्रांति के पहले पड़ाव पर हूँ !

Sunday, June 4, 2017

न ही मैं, खुद को समझा पाया हूँ ..

और हो सकता है
कि,
किसी सुबह
 तुमसे मुलाकात ही
न हों !
मैंने दुनिया को
सोचना छोड़ दिया है
जबकि,
मैं जानता हूँ
कि यह, वही दुनिया है
जहाँ से निकल कर
मैं लेना चाहता हूँ साँस !
न तुमने समझा मुझे
न ही
मैं, खुद को समझा पाया हूँ ....
तुम्हारे गुड नाईट
कहने के बाद के समय को
मैं सोचता हूँ ...
तुम समझ नहीं सकी हो मुझे
मैं,
अपनी तमाम रातें
तुम्हारे नाम करता हूँ |

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...