Sunday, October 20, 2019

गंगा की छाती पर चांदनी अठखेली कर रही है

रात की गहरी ख़ामोशी में
प्रेम की नहीं
विद्रोह की कविता लिखी जाती है
मैं एक प्रेमी हूँ
और विद्रोह लिख रहा हूँ
गंगा की छाती पर चांदनी अठखेली कर रही है
दिन भर के श्रम से थके मल्लाह
फ़र्श पर बेहोश पड़े हैं
गंगा ने अपनी वेदना किसी से नहीं कही
नांव भी किनारों पर बेहाल पड़े हैं
विदेशी सैलानी धर्म की खोज में
गंगा की छाती चीरते हैं रोज
नदी का दर्द
मेरा ही दर्द है
हम दोनों ने ख़ामोशी तान ली है
चाय वाले ने बता दिया उसे
कुल्हड़ की मिट्टी में
उसकी खुशबू मिली है मुझे
सूरज बतायेगा सुबह
हम क्यों नहीं रो पाए
सभी घाट अब शर्मिंदा हैं
गंगा की बर्बादी के लिए
मेरी गवाही चाहते हैं
और मैं बता नहीं सकता
कि तुमने भी देखा उसकी बर्बादी की कहानी
बनारस, काशी है
क्योटो नहीं
नाम बदलने वाला योगी
क्यों भूल गया है
यह चिंता गंगा की नहीं
उसका दुःख है कि
माँ बोलने वालों ने उसे समझा ही नहीं
जिस किसी ने सवाल किया
उसे देशद्रोही बना दिया
मैंने वफ़ा की बात की
मुझे ही बेवफ़ा बना दिया !

Thursday, October 17, 2019

बिस्मिल्लाह अब शहनाई नहीं बजाते बनारस के किसी घाट पर

पहले मंगल पर पहुंचे
फिर चाँद पर
बड़ा पुल राष्ट्र को समर्पित हुआ
फिर मन की बात का प्रसारण हुआ
जमीन पर कुछ किसान मारे गये
भूख से कुछ बच्चे मरे
उसने राष्ट्र के नाम सन्देश दिया
देश सुरक्षित हाथों में है
शहीदों के नाम पर युवा फिर उसे चुने
उसके सहपाठी ने कहा
ताज महल हमारी संस्कृति नहीं
उसने ऐलान करवाया
सबको नागरिकता दी जाएगी
मुसलमानों को छोड़ कर
गंगा थोड़ी उदास हुई
किंतु अब उसने रोना छोड़ दिया
बिस्मिल्लाह अब शहनाई नहीं बजाते
बनारस के किसी घाट पर
मैंने असफल प्रयास किया
एक प्रेम कविता रचने की
पहले ईश्वर नामक प्राणी मरा
फिर मेरी संवेदनाएं |

Friday, October 4, 2019

मेरे सवाल तब भी तुम्हें करेंगे बेचैन

कवि रात की तन्हाई में
अक्सर रोता है
खुद को तसल्ली देता है
कवि ने आईने के सामने खड़ा होकर कहा
हाँ, मैं कायर हूँ
तुम्हारी नज़रों में
पर एक बार पूछ लेना - सत्ता से
क्यों डरती है -मेरी कलम से
मेरे सवाल से
तुम्हारी तरह ?
जाओ, खुली छूट है अभी
फैलाओ झूठ , नफ़रत मेरे खिलाफ
करो बदनाम मुझे
बेवफ़ा और देशद्रोही कहो मुझे
मेरे सवाल तब भी तुम्हें करेंगे बेचैन
तुम्हें आईने से डर लगेगा
नकली मुस्कुराने की अदा से
कुछ लोग दीवाने बन जायेंगे
फिर भी तुम्हें हमेशा मेरे सवालों से
भय लगेगा
मेरा इरादा भय फैलाना नहीं है
और सवाल डर के लिए नहीं
सच के लिए होते हैं
तुम सच छुपा रहे हो
इसलिए काँप रहे हो

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...