अब तक बची हुई थी कविताएं मेरी
तुम्हारे जिक्र से
तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है शायद
आगे क्या करूं
किस तरह से बचूं
पता नहीं
या कविता छोड़ दूं
या उन्हें कैद कर दूँ
लॉक डाउन की तरह
आजीवन किसी अँधेरी कोठरी में !
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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