Thursday, April 21, 2011

ऐसा क्यों ?

खून हमेशा 
पानी से गाढ़ा होता है 
किन्तु खून आज बह रहा है 
पानी की तरह /

आज जो लौट कर आये 
इराक से 
अफगानिस्तान से 
भारत के दन्तेबाड़ा से 
गोधरा से ,सिंगूर और नंदीग्राम से 
उनके पैरों में 
खून के छींटे  देखी है मैंने 
लाल माटी देखी है हमने 
अपने ही देश में 
किन्तु --
जिन्होंने किया था लाल 
इस माटी को 
अपने ही नागरिकों के रक्त से 
उनके हाथों में 
आज सफेदी की चमकार है 
ऐसा क्यों?

Monday, April 18, 2011

बिखरने लगी है

संजोकर रखा था 
जो यादें तुम्हारी 
मैंने अपने दिल में 
वे भी अब बिखरने लगी है 
मेरी तरह 
बार -बार उन्हें 
फिर से समेटने की  कोशिश करता हूँ 
पर टूटा हुआ आदमी 
कहाँ समेट पाता है कुछ ?

Monday, April 11, 2011

घायल हुए हम और तुम

सिंगुर हो
या नंदीग्राम

या कहीं और 
कहीं नही लड़ी गई
तुम्हारी - हमारी लड़ाई
हर जगह
उन्होंने लड़ी
सिर्फ अपनी साख की लड़ाई
वोट की लड़ाई
घायल हुए
हम और तुम
और जीत हुई उनकी
क्या तुम इसे
अपनी लड़ाई मानते हो
अपनी जीत मानते हो ?
चुनावों के बाद
दिखेगा इनका असली चेहरा
वे फिर पैंतरा बदलेंगे
हमें फिर लड़ना पड़ेगा
अपनी जमीन के लिए

हमारे नाम पर लड़ी गई
हर लड़ाई 

उनकी खुद की ज़मीन 
बचाने की लड़ाई थी 
और --
हर लड़ाई में 
उनकी जमीन बनती गई 
और हम ज़मीन हारते गए 
हम वहीं रह गये 
जहाँ से शुरू किया था हमने यह जंग 

बानर कब गिने गये 
योद्धाओं में 
लंका की लड़ाई में 
जीत तो केवल राम की हुई //

लिची का पेड़

लिची का पेड़ 
फिर भर गया है फूलों से 
रानी मधुमक्खी आ गई है 
अपनी सेना के साथ 
उनका रस चूसने
और सुंदरवन से 
आ गये हैं
मधु के व्यापारी 
लिची के पेड़ का 
दर-दाम करने 
किन्तु --
मासीमाँ ने मना कर दिया 
इस बार पेड़ बेचने से 
यह कहकर कि--
"आमादेर बडो खोका असछे एबार गरोमेर छुटीते" *
लिची जब पकेगा 
पूरा पेड़ लाल हो उठेगा 
रस भरी  लिचिओं के गुच्छों से //

*( हमारा बड़ा लड़का आ रहा है इसबार गर्मियों में )

Saturday, April 9, 2011

धोती

मुझे याद है आज भी 
मेरे बाबा धोती पहनते थे 
और हर रोज 
माँ धो देती थी 
बाबा की धोती 
घर के पीछे के 
पोखर के घाट पर बैठ कर
बाबा के मृत्यु के 
तीस साल बाद 
अब कोई धोती नही पहनता
मेरे गाँव में 
गाँव भी अब 
गाँव कहाँ रहा 
शहर की तरह 
बहुराष्ट्रीय कम्पनिओं का 
प्रवेश हो चुका है 
मेरे गाँव में 
अब मेरे गाँव में 
सब जींस पहनते हैं 
मास्टर जी भी 
मैंने पूछा था उन्हें 
धोती छोड़ कर जींस 
पहनने का कारण
मास्टर जी ने कहा था --
यही तो फैशन है आज का
और --
धोती पहनना 
अब उन्हें असहज लगता है 
धोने में भी परेशानी होती है 
क्योंकि तालाब अब सूखने लगे हैं 
और गाँव में भी अब 
पानी की कमी है 
गाँधी जी 
राजेन्द्र बाबू
शास्त्री जी 
और मेरे बाबा 
धोती पहने खड़े हैं 
अपनी -अपनी तस्वीरों में 
कभी यही धोती 
मेरे गाँव -मेरे देश की 
पहचान थी //

Thursday, April 7, 2011

विचलित नहीं हूँ मैं

इन काले बादलों के पीछे 
जो नीला आकाश है 
वह मेरा है 
जरा भी 
विचलित नहीं हूँ मैं 
इन काली घटाओं की भीड़ से 
हवा के एक झोंके की  
प्रतीक्षा है  मुझे .

काश पहले घटी होती यह घटना

हैरानी अब इस बात पर है 
कि तुम्हें सताने लगी हैं 
मेरी परेशानियाँ 
काश पहले घटी होती यह घटना 
तो --
शायद मैं इतना 
परेशान न होता आज इतना 
अब आलम यह है 
कि मैं कह नहीं सकता तुम्हे 
कि तुम --
मत हो परेशान इतना 
मेरी परेशानियों से 
क्योंकि --
अब यह परेशानियाँ 
सिर्फ मेरी है .//

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...