कविताएं मरती नहीं कभी
छिप सकती हैं
अक्सर छिपा दी जाती हैं
षडयंत्र कर
ताकि पुरस्कार के लिए घोषित नाम पर
शर्मिंदा न होना पड़े
गैंगबाज, कलावादी आलोचक चयनकर्ता को
एक कवि मर गया ...कर्ज़ और भुखमरी से
फाउन्डेशन वाले आलोचक ने क्या किया ?
कवि के मरने के बाद दुधिया दांत दिखाते हुए अफ़सोस की उलटी की
एक कविता संकलन छपवा दिया
इसी तरह वो फिर महान हो गया
क्रांतिकारी टाइप तमाम लौंडे कवि
उसके ब्रांड का झोला उठा कर घूमते दिखे हमको मेले में
आज उन सबको सरकारी नौकरी है !
मुझको बोला एक दोस्त ने - कर लिए क्रांति ?
हम बोले ... अब भी शर्मिंदा नहीं हूँ
सरकार की औकात अब भी नहीं
मुझे खरीद सकें
हाँ, जो दलाल थे कवि बने हुए
उनको हमने देख लिया है ...
आगे तो इतिहास होगा -
कौन , कब कहाँ छिपा था
कौन किसे धोखा दे रहा था ..
हाँ, विश्वास अब मर चुका है ..
उम्मीद और वादों से अब डर लगता है
नारों की बात ना करो ...
रात की गहराई ही जाने सन्नाटे का राज