परिवर्तन के नारों के बीच
शांत पड़ी है
‘मौनी नदी’
सुंदरवन के बीच
कुछ बचे बाघों ने
माथे पर लिए आदमखोर का कलंक
माथे पर लिए आदमखोर का कलंक
पंकिल कछार पर
नदी किनारे छोड़ दिए हैं
पंजों के निशान
ताकि, गिन सके हम आसानी से
उनकी संख्या
और मैनग्रोव के जंगल
करते हैं ज्वार का इंतेजार
जंगल निवासी भी हो गए
विलुप्त ....
माफियों के हाथों
परिवर्तन का यह दौर
बहुत भारी है
पुल बन गया है ,और
नौकाएं निष्क्रिय हैं
बस परिवर्तन वाले दल का
पताका बुलंद है
खारा पानी पीकर
सुंदर वन के बंदरों के लाल हुए गाल पर भी
दिखता है उन्हें विपक्ष
भय है मुझे
कहीं बाघ के बाद
यह भी न आ जाये निशाने पर ..
मौनी नदी ने बताया
क्यों रहती है वो खामोश ....
मगर मनुष्य के स्वार्थ में कोई कमी नहीं आने वाली.............
ReplyDeleteभय स्वाभाविक है..........
गहन भावाव्यक्ति..
शुक्रिया बहुत बहुत आपका
Deleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद सदा जी
Deleteगहरी सोच ... संवेदना की पराकाष्ठा है आपकी लाजवाब प्रभावी रचना ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया दिगम्बर जी .....
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