खत्म हो रहे जंगल
फिर भी
बढ़ रहे हैं शिकारी
बंदूक नही ,
तोप ,गोली और बम के साथ
कर रहे हैं निर्माण
ईंट-पत्थर और लोहे के जंगल
जहां करेंगे शिकार
मनमानी ढंग से
काट दिए जायेंगे वे हाथ
जो उठेंगे ,इनके विरुद्ध
दबा दी जायेगी हर आवाज़
आदमखोर इस जंगल का
हो रहा विस्तार
यहाँ आदमी ,
आदमी का करेगा शिकार
क्या हम मिलकर
रोक पाएंगे इसे ..?
फिर भी
बढ़ रहे हैं शिकारी
बंदूक नही ,
तोप ,गोली और बम के साथ
कर रहे हैं निर्माण
ईंट-पत्थर और लोहे के जंगल
जहां करेंगे शिकार
मनमानी ढंग से
काट दिए जायेंगे वे हाथ
जो उठेंगे ,इनके विरुद्ध
दबा दी जायेगी हर आवाज़
आदमखोर इस जंगल का
हो रहा विस्तार
यहाँ आदमी ,
आदमी का करेगा शिकार
क्या हम मिलकर
रोक पाएंगे इसे ..?
बहुत बढिया ।
ReplyDeleteआभार फिर से
Deleteकहाँ रोक पा रहे हैं..............
ReplyDeleteसार्थक रचना.
आइये फिर प्रयास करें , आभार
Delete