दहक कर जब
जल उठे मेरी चिता
दहक उठे कुछ शोले
तुम्हारे दिल में भी
मैं चाहता हूँ
विद्रोह की आग
कभी न बुझे
और अमर हो जाये
हमारी क्रांति
जारी रहे अनवरत
आये न जब तक चारों ओर
अमन और शांति ........
जल उठे मेरी चिता
दहक उठे कुछ शोले
तुम्हारे दिल में भी
मैं चाहता हूँ
विद्रोह की आग
कभी न बुझे
और अमर हो जाये
हमारी क्रांति
जारी रहे अनवरत
आये न जब तक चारों ओर
अमन और शांति ........
शुक्रिया बहुत -बहुत सदा जी
ReplyDeleteइस सम्मान के लिए दिल से आभार फिर से सदा जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद माथुर जी
Deleteमैं चाहता हूँ
ReplyDeleteविद्रोह की आग
कभी न बुझे
और अमर हो जाये
हमारी क्रांति.
अमन और शांति के लिये सभी तरह के प्रयोग आजमाए जाने चाहिये.
शुक्रिया रचना जी .
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