Saturday, March 30, 2013

टूटी नही है प्रतिबद्धता

समय के कालचक्र में रहकर भी 
टूटी नही है कवि की प्रतिबद्धता

उम्र कुछ बढ़ी जरूर है 
पर हौसला बुलंद है 
बूढ़े बरगद की तरह 

नई कोपलें फूटने लगी है फिर से 
उम्मीदे जगाने के लिए 
उन टूट चुके लोगों में ...
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है


कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष  की रणभूमि पर
योध्या बनकर 

तिमिर में भी लड़ता एक दीया 
तूफान को ललकारता 
लहरों से कहता -
आओ छुओ मुझे 
या बहाकर ले जाओ 

हम भी तो देखें 
हिम्मत तुम्हारी ....

4 comments:

  1. प्रतिबद्ध कवि कभी अपनी राह नहीं छोड़ता और यही एक सच्‍चे कवि की पहचान है... यह कविता इसी विश्‍वास को पुख्‍ता करती है।

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  2. अंतर्मन की जिजीविषा के प्रति प्रतिबद्धता को पुष्ट करती यह कविता आशा है .

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  3. tufaan ko lalkarta ,lahron se kahta aao mujhe chhuo yan baha kr le jao...bahut prtibdhta!!

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...