Wednesday, July 10, 2013

छल कर चले गये कुछ

दोस्त बनकर जो आये थे 
छल कर चले गये कुछ 
मेरा अपराध 
कि मैंने नही की 
उनकी चाटुकारिता 

जाम से जाम टकराते वक्त 
बांधते रहे वे 
मेरी तारीफों की पुल 
और मैं 
मुस्कुराता रहा
राज्य सभा में अपमानित
द्रौपदी की तरह .....

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...