Saturday, July 2, 2022

बच्चों ने कश्ती में सूखे की पीड़ा लिखी थी

बरसात में कभी देखिये
नदी को नहाते हुए
उसकी ख़ुशी और उमंग को
महसूस कीजिये कभी
विस्तार लेती नदी
जब गाती है
सागर से मिलन का गीत
दोनों पाटों को
बात करते सुनिए

हर नदी की किस्मत में
मिलन नहीं है
फिर भी बारिश में नहाती कोई नदी
जब खुश होती है
पहाड़ खोल देता है अपनी बाहें
झूमता है जंगल
खेत खोल देता द्वार
और कहता -
ओ , नदी ...
थोड़ा संभल कर
मुझे सर्दी लग जाएगी !
खेत,
अपने उदास किसान का
चेहरा सोच कर बुबुदाता है !

कहीं दूर
उस नदी किनारे पर बसा गाँव से निकल कर
कुछ बच्चों ने
कागज की कश्ती बनाई थी
वे उसे
नदी में बहा देना चाहते थे

उस कश्ती में
बच्चों ने
अपनी ख़ुशी भर दी
और बताया
कि, पिछले साल
उनके गाँव के किसान ने
सूखे के कारण
अपनी जान दे दी थी
पानी के आभाव में मरे थे कई मवेशी

बच्चों ने कश्ती में
सूखे की पीड़ा लिखी थी
अब उस गांव में सैलाब है!

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