Sunday, February 19, 2017

अब जुदा होके

1.
प्रेम में रहते हुए
कभी लिख नहीं पाया
प्रेम कविता
अब जुदा होके
रोना चाहता हूँ 
और निकल आती है
कविताएँ
अब अक्सर
उभर आती है बनारस की गंगा
मेरी आँखों में
जिसे मैंने देखा था शांत बहते हुए
तुम्हारी आँखों में
तुमसे लिपट कर रोना चाहता हूँ
और तुम .....
उफ्फ ....

2.

तुमने मुझे भूला दिया
यह पता है मुझे
मैं तुम्हें
याद नहीं करता
तुम्हें भूला नहीं हूँ 
भूलूँगा नहीं
आखिरी साँस के बाद भी
कवि हूँ तुम्हारा
तुमसे प्यार किया
मैंने !
-तुम्हारा कवि सीरिज से

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...