Friday, April 14, 2017

जनकवि रोता है

अपराध की बड़ी घटनाएं
जब सिमट जाती हैं
अखबारों के भीतरी पेज के किसी छोटे से कोने में
और जब लोगों की रूचि बदल जाती है
व्हाट्स एप चैट पर 
ऐसे में संवेदनाएं डिजिटल होकर
बह जाती हैं
बारिश के पानी की तरह
प्रेम डूब जाता है
बाढ़ में खेतों की तरह
सत्ता ठहाका लगाती है
अपनी जीत पर
किसान फांसी लगाता है
अंधकार अपने साम्राज्य का विस्तार करता है
भांड लीन हो जाते हैं जयगान में
माँ मजबूर हो जाती है
भूख से तड़पते अपने बच्चे के लिए
प्रेमियों को सुना दी जाती है
सज़ा-ए-मौत
अंधकार कोने में
जनकवि रोता है
कि उसका लिखा कुछ काम न आया !

2 comments:

  1. देर से सही लेकिन सच्चे दिल की पुकार खाली नहीं जाती
    बहुत सही

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