Tuesday, May 29, 2018

नहीं छीन सकते तुम हमसे हमारा विवेक और साहस

हालात यह है
कि अब हमारी मौत का पेटेंट भी
उन्होंने अपने नाम करवा लिया है
और इस ख़ुशी में
वे राजधानी में जश्न मना रहे हैं
गिद्धों ने यूँ ही नहीं किया था यहाँ से पलायन
वे जान चुके थे
कि एकदिन
सत्ता हमारा मांस नोचेगी
भुखमरी की भविष्यवाणी से
उनका पलायन जायज कहा जा सकता है आज
सच के उजागर करने पर
हम पर विद्रोह का लगेगा आरोप
इसका आभास था सभी को
किन्तु हमेशा की तरह
हम फिर उनके झूठे वादों में बहक गये
अब ऐसे में जब हमारे पास
न तो जीने का अधिकार है
न ही मरने का अधिकार,
तो क्यों न हम फिर से याद करें सुकरात के ज़हर के प्याले को
और तोड़ दें राजा की तमाम मूर्तियों को !
ताकि मृत्यु आये
तो आये सुकरात की मृत्यु की तरह
ताकि अहसास हो जाये राजा को
कि सब छीन सकते हो हमसे
पर नहीं छीन सकते तुम
हमसे हमारा विवेक और साहस |

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हिंदी पत्रकारिता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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