Saturday, September 21, 2019

कविता नहीं बजट है

उदास कवि की पूर्व प्रेमिका भी
अब कवि हो गई है
कवि जाम लगा रहा है
वो मंच पर कविता पढ़ रही है

मने बजट के बाद बजट सुने  हो  कभी
यहां बजट नहीं दिवालिया की नुमाइश है

प्रेम कभी था नहीं
ज़रूरत के समझौते थे

बात कवि के प्रेम और प्रेमिका की नहीं
सत्ता और जनता की मान लीजिये

कवि जन का है
प्रेमिका सत्ता चाहती है

फेमिनिस्ट नाराज़ हो सकते हैं
पर उन्हें पता होना चाहिए
कवि  लेफ्टिस्ट है

दरअसल,
कवि को , लेफ्ट को
घमंड बहुत है
कि, उसके बिना कोई बढ़ नहीं सकता आगे

बंगाल -त्रिपुरा  के बाद
कवि की प्रेमिका ने दिखा दिया
कविता लिख -पढ़ कर कैसे बढ़ते हैं आगे

कवि के नाना ने कहा था -ज्ञान से नहीं , धन से बढ़ता है सम्मान
कवि के दोस्त के नाना ने भी कुछ ऐसा कहा था

नाना को हराने की ज़िद में
कवि नंगा हो गया

कवि  नकली है  शायद
हैलो नहीं , लाल सलाम कहता है
प्रेमिका अब जय श्रीराम बोलती है !

2 comments:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...