Saturday, September 28, 2019

फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है

दोस्त अब अक्सर देते हैं सलाह
चुप रहो !
सत्ता ताकतवर है
हालांकि उनकी सलाह में
मेरी जान की फ़िक्र है
फिर भी मुझे लगता है यह सलाह किसी दोस्त की नहीं
सत्ता पर बैठे किसी अधिनायक के वफ़ादार की सलाह है
मेरे दोस्त मुझे जानते हैं
मंजूर है राजद्रोह का आरोप
झुकना नामंजूर है मुझे
गुलामी से बड़ा अभिशाप कोई और नहीं
चापलूसी कायरता की पहचान है
मौत के डर से गुलामी
मौत से बदतर है
इतिहास गवाह है
डरने वाला कभी बच नहीं पाया
बिजली गिरने के भय से
वृक्षों ने उगने से कभी मना नहीं किया
बिजली को तो गिरना ही है
बेहतर है मैदान नहीं , हम पेड़ बन कर उगे
खड़े रहें तन कर
जल जाएँ तो भी पेड़ ही कहलायेंगे
समतल होने में गुलामी का खतरा ज्यादा है
जानता हूँ , यह क्रांति के लिए सबसे प्रतिकूल समय है
फिर भी एक चिंगारी का होना जरुरी है !

1 comment:

  1. बगावत से लबरेज़ कविता।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वगात है।
    iwillrocknow.com

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