अब तक बची हुई थी कविताएं मेरी
तुम्हारे जिक्र से
तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है शायद
आगे क्या करूं
किस तरह से बचूं
पता नहीं
या कविता छोड़ दूं
या उन्हें कैद कर दूँ
लॉक डाउन की तरह
आजीवन किसी अँधेरी कोठरी में !
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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नमक तो नमक ही है नमक सागर में भी है और इंसानी देह में भी लेकिन, इंसानी देह और समंदर के नमक में फ़र्क होता है! और मैंने तुम्हारी देह का नमक...
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