Tuesday, April 14, 2020

तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है

अब तक बची हुई थी कविताएं मेरी तुम्हारे जिक्र से तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है शायद आगे क्या करूं किस तरह से बचूं पता नहीं या कविता छोड़ दूं या उन्हें कैद कर दूँ लॉक डाउन की तरह आजीवन किसी अँधेरी कोठरी में !

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...