जल दर्पण में
देखा चाँद को
एक दम शांत
लहरों ने किया विचलित रह -रह कर
पानी को मालूम था
चाँद की बेचैनी ......
देखा चाँद को
एक दम शांत
लहरों ने किया विचलित रह -रह कर
पानी को मालूम था
चाँद की बेचैनी ......
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
खूबसूरत..............
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत........................
अनु
Shukriya Anu ji
Deleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
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