Monday, June 18, 2012

जारी रहे अनवरत

दहक कर जब 
जल उठे मेरी चिता 
दहक उठे कुछ शोले 
तुम्हारे दिल में भी

मैं चाहता हूँ
विद्रोह की आग
कभी न बुझे
और अमर हो जाये
हमारी क्रांति

जारी रहे अनवरत
आये न जब तक चारों ओर
अमन और शांति ........

6 comments:

  1. शुक्रिया बहुत -बहुत सदा जी

    ReplyDelete
  2. इस सम्मान के लिए दिल से आभार फिर से सदा जी

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया सर!


    सादर

    ReplyDelete
  4. मैं चाहता हूँ
    विद्रोह की आग
    कभी न बुझे
    और अमर हो जाये
    हमारी क्रांति.

    अमन और शांति के लिये सभी तरह के प्रयोग आजमाए जाने चाहिये.

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...