Thursday, June 21, 2012

खता थी मेरी

तुम्हे गिना था 
अपनों में 
रखा था 
पलकों पर 

मूँद कर आँखे 
यकीं करना, 
खता थी मेरी 
सीखा दिया, तुमने 
भावनाओं में डूबना 
खता थी मेरी, 
जता दिया तुमने ...

4 comments:

  1. वाह ... बहुत बढि़या।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुक्रिया फिर से सदा जी ,

      Delete
  2. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत -बहुत आभार शांति जी

      Delete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...