दिवाली के मिठाइयों
अब मिलने लगा है रंग
सब जानते हैं फिर भी कोई होता नही दंग
खाकर वही मिठाइयाँ
हो जाते सब मग्न
मिलावटी घी / तेल से
जलते हैं अब दीये
रात निकलकर देखो सब रहते हैं पिये
बच्चों का हाथ अब पहुँचता नही
बड़ों से चरणों तक
रुक जाता है आकर घुटनों तक
पंडित पड़ता नही मन्त्र
उनका काम करता है
सी . डी . प्लयेर नामक यंत्र
यही है त्योहार मानाने का आधुनिक तंत्र .
Saturday, October 30, 2010
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
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मिलावटी घी / तेल से
ReplyDeleteजलते हैं अब दीये
रात निकलकर देखो सब रहते हैं पिये.....
waah puja ka matlab yahi hai ...suder