दिवाली के मिठाइयों
अब मिलने लगा है रंग
सब जानते हैं फिर भी कोई होता नही दंग
खाकर वही मिठाइयाँ
हो जाते सब मग्न
मिलावटी घी / तेल से
जलते हैं अब दीये
रात निकलकर देखो सब रहते हैं पिये
बच्चों का हाथ अब पहुँचता नही
बड़ों से चरणों तक
रुक जाता है आकर घुटनों तक
पंडित पड़ता नही मन्त्र
उनका काम करता है
सी . डी . प्लयेर नामक यंत्र
यही है त्योहार मानाने का आधुनिक तंत्र .
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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मिलावटी घी / तेल से
ReplyDeleteजलते हैं अब दीये
रात निकलकर देखो सब रहते हैं पिये.....
waah puja ka matlab yahi hai ...suder