वर्ष दो हजार ग्यारह
अट्ठाईस से इकतीस जनवरी तक
मेरा पड़ाव था बागबाहरा
यहाँ एक घर है
इस घर में छतीस जन हैं
बागबाहरा का यह घर
लगा मुझे और उन्हें
जैसे बागों में बहार हो
देवताओं का आमंत्रण हो
अपने भक्तों को /
लगा मुझे जैसे
यहीं से हुआ था श्री गणेश
अतिथि देवो भवो /
बागबाहरा के छत्तीस जनों वाले इस घर में
पहले -पहल
मेरे इस प्रवास के अनुभव को
मैंने कहा--
गूंगे का मीठा आम
राजमार्ग से सटा हुआ
खेत - खलियान से जुड़ा हुआ
यह घर जिसके सामने
आलीशान देवालय भी
क्षीण लगा मुझे /
चहकते - कूदते
चलते -फिरते
हर कोई
देव दूत लगा मुझे
आदर -सत्कार
सेवा भाव , सुसंस्कृत से
अलंकृत
इस घर का प्रत्येक सदस्य /
बच्चा, बुजुर्ग
क्या कुछ नही सिखाया मुझे?
इस प्रवास के बाद
अब किसी मंदिर की तलाश नही मुझे
किउंकि --
देवकी -वासुदेव
यशोदा और नन्द
और मिले --
रजत कृष्ण मुझे
बागबाहरा के इस घर में /