तुम्हारी बेरुखी से
शिकवा नहीं मुझे
तुम्हारे मायूस चेहरे से
गमज़दा हूँ मैं /
कोई चाहत नहीं
कि मिले मुझे
तुम्हारी मुहब्बत में पनाह
सिर्फ मैं
तुम्हारी खुशियों की
आज़ादी चाहता हूँ
गम की कैद से /
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
nice poem. When you find true love, you want his/her happiness without any return.
ReplyDeleteTHANKS.
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