Sunday, December 13, 2020

मैं तो अपने लोगों के साथ सिंघु बॉर्डर पर हूँ

 किसी को नहीं दिखता

जमीन के नीचे
उबलते लावा का रंग
अब पढ़ते हैं
तस्वीर में
मेरा चेहरा
बढ़ी हुई दाढ़ी
और ....
कुछ नहीं
मने मेरा कवि मर गया है
खो गया है कहीं
मैं तो अपने लोगों के साथ सिंघु बॉर्डर पर हूँ
टिकरी पर हूं
मैं चीनी और पाकिस्तानी सीमा पर भी हूँ
ये सत्ता मुझे पहचान कर भी पहचान नहीं पाती है ।
कारण आप जानते हैं
इंक़लाब ज़िंदाबाद कहने के लिए
56 इंची सीना नहीं चाहिए
सिर्फ जागरूक नागरिक होना काफी है ।

12 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. सही है
    हर आवाज में
    हर चीख़ में
    हर प्रार्थना में
    हर स्वाभिमान में
    हर दहाड़ में
    जिम्मेदार व जागरूक नागरिक है।
    गजब का लेखन।

    नई रचना- समानता

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  3. इंक़लाब ज़िंदाबाद कहने के लिए
    56 इंची सीना नहीं चाहिए
    सिर्फ जागरूक नागरिक होना काफी है ।

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  4. बहुत गहरा सृजन ...
    इस आम इंसान को कोई देख तो पाए ... काश ...

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  5. bahut gahri kavita... samay ki maang hai ye!! badhai aapko.

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