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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रख...
खांडा पाडा , मेरा पैतृक गांव/यहाँ नापित पाड़ा में आज भी है अंधकार का राज/माईती लोग नही छोड़ते रास्ता/मैं फिर लौट कर जाता हूँ/मौली नदी के किनारे/देखने के लिए बाघों के पंजे।
ReplyDeleteअद्भुत, सच में सुन्दरवन में आज भी बाघ का रज है और ज़िन्दगी रिरियाती रहती है इन हब्शी शेरों (राजनैतिक) के सामने, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार स्वीकार करें।