आज मैंने फिर
देखा है
सड़कों पर
इंसानी खून
मांस के चीथड़े
लहूलुहान इंसानियत
भेड़ियों ने दिन दहाड़े किया अपना काम
जिनके कंधों पर था
सुरक्षा का भार
वे सोते रहे गहरी नींद में
चारमीनार पर फिर से
दीखने लगीं हैं दरारे
खामोश है गोलकुंडा
बूढ़े खंडहर के रूप में
मांस के चीथड़े
लहूलुहान इंसानियत
भेड़ियों ने दिन दहाड़े किया अपना काम
जिनके कंधों पर था
सुरक्षा का भार
वे सोते रहे गहरी नींद में
चारमीनार पर फिर से
दीखने लगीं हैं दरारे
खामोश है गोलकुंडा
बूढ़े खंडहर के रूप में
शांतिदूत गौतमबुद्ध की प्रतिमा
हुसैन सागर के बीच
एक दम नि:शब्द
मैं बहुत विचलित हूँ
इस शहर में अब
मैं बहुत विचलित हूँ
इस शहर में अब
.....
21/02/2013 की शाम हैदराबाद में हुए बम विस्फोट के बाद लिखी एक रचना .