Tuesday, February 5, 2013

ताकि बहारें बनी रहे इन फिज़ाओं में

सुनो बच्चियों 
तुमने क्या गाया काश्मीर की वादियों में 
कि मलाल के बाद 
अब तुम हो निशाने पर 

लेकिन सुनो 
इन्हें खूब शौक है 
कब्बाली का .. 

पर तुम तो 
अपना ही गीत गाना 
उन्मुक्त स्वर में 
ताकि बहारें बनी रहे 
इन फिज़ाओं में ,और 
महकते रहे गुलशन 

देखा है न 
पहाड़ों को 
किस तरह खड़े हैं अडिग ...? 

(काश्मीर की उन बच्चियों के हक़ में ..जिन्हें रोका जा रहा है गाने से ) 

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