Friday, May 10, 2013

गांवों का देश भारत

नर्मदा से होकर 
कोसी के किनारे से लेकर 
हुगली नदी के तट तक 
रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक 
भारत को देखा 
गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन 
धूल से सना हुआ चेहरे
घुटनों तक गीली मिटटी का लेप
काले -पीले कुछ कत्थई दांत
पेड़ पर बैठे नीलकंठ
इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते
गांवों का देश भारत

दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...?
फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
योजना आयोग की तरह ....



*मध्य प्रदेश से होकर बिहार ,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता 

3 comments:

  1. गूगल इमेज पर जाकर गाँव देखा और लिखी कविता.....
    तभी महकती नहीं ऐसी कवितायें......

    अनु

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  2. फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक
    आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर
    योजना आयोग की तरह ....
    very nice nityanandji

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  3. आज की ब्लॉग बुलेटिन १० मई, मैनपुरी और कैफ़ी साहब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...