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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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एक नदी जो निरंतर बहती है हम सबके भीतर कहीं वह नदी जिसने देखा नही कभी कोई सूखा वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी मैं मिला हूँ उस ...
पर हर नई सरहद ने जन्म दिया
ReplyDeleteएक नई जंग को
अपने -अपने चमन में
नही उगा पाये हम
कभी अमन के फूल ....
और मरते रहें
अपनी -अपनी मौत .......
सच है
आभार वंदना जी
Deleteकितने सटीक तरीके से आप पाठक को सत्य से रू-ब-रू कराते हैं! यथार्थ के साथ रचनात्मकता का सत्य!
ReplyDeleteआभार
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