Friday, June 12, 2015

ओ अमलतास

मैं उदासी चाहता हूँ
और तुम ऐसा होने नहीं देते
जीत जाते हो हर बार
तुम्हारा क्या करूँ मैं ?

ओ अमलतास !

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...