Thursday, September 24, 2015

पता नहीं कितना बचा हूँ अब

मैं मिट रहा हूँ 
पल-पल
पता नहीं कितना बचा हूँ अब
कल रात ही मिटा दिया 
मैंने उन रातों को 
जो हमने गुजारी साथ-साथ
चाँद गवाह है
कि मैंने नहीं किया कोई फ़रेब तुम्हारे साथ
बस आ गया था अमावस हमारे बीच
जिसे तुमने मेरा धोखा समझा ||



4 comments:

  1. बेहद खूबसूरत नित्या जी

    ReplyDelete
  2. जिस रात का गवाह चाँद है उसे कोई कैसे मिटा सकता है।

    ReplyDelete
  3. जिस रात का गवाह चाँद है उसे कोई कैसे मिटा सकता है।

    ReplyDelete
  4. हौसला अफजाई के लिए आप सभी का शुक्रिया |

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...