Wednesday, January 6, 2016

ये आदत कभी न छूटे

तुम्हारे गुस्से को
मैंने सेव कर लिया है
दिल के हार्ड डिस्क में
और गुस्से में कही गयी तुम्हारी मीठी बातों को
मैंने टंकित कर लिया है
अपनी कविता की डायरी में
ताकि पढ़ सकूं उन्हें
उनदिनों में,
जब गुस्साने की आदत छूट जाएगी तुम्हारी |
पर मैं चाहता हूँ
कि ये आदत कभी न छूटे
क्योंकि गुस्सा शांत होने पर
तुम्हें बहुत प्यार आता है मुझ पर |
-तुम्हारा कवि

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...